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बच्चों की असीमित कल्पनाओं के अद्भुत कथाकार : समीर गांगुली

बुधवार, 17 दिसंबर 2025

 

बच्चों की असीमित कल्पनाओं के अद्भुत कथाकार :

समीर गांगुली

समीर गांगुली 

किसी बाल साहित्यकार या कहानीकार का समग्र मूल्यांकन करना अपने आप में एक कठिन काम है ।खासकर ऐसे में जब आपके पास उस लेखक का समग्र साहित्य न उपलब्ध हो ।लेकिन कहा जाता है कि चूल्हे पर चढ़े भगौने के एक चावल को दबाने से ही पता चल जाता है कि सारे चावल पाक गए हैं या नहीं ।तो मैं कह सकता हूँ कि समीर गांगुली बच्चों के एक पके हुए कथाकार हैं ।जिनके बाल कथा साहित्य की विविधता देखते ही बनती है ।मैंने समीर गांगुली जी के बारे में यह धारणा उनकी मात्र चार किताबें पढ़ कर बनाई है ।कारण मेरे पास उनकी सिर्फ चार किताबें ही उपलब्ध थीं ।1-एक था दाना अनजाना 2-मायावन और धन धना धन 3-मिशन ग्रीन वार 4-रंगीली बुलेट और वीर ।

       


मैंने समीर जी की इन चारों किताबों के आधार पर ही उनके द्वारा अभी तक लिखे गए बाल साहित्य के मूल्यांकन का खतरा भी उठाया है ।यहाँ मैं यह बता देना भी जरूरी समझता हूँ  कि समीर जी की बाल साहित्य की और भी कई किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं ।जिनकी समय समय पर काफी चर्चा भी होती रही है ।देश भर की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में भी इनकी ढेरों कहानियां ,कुछ नाटक और अन्य साहित्य भी प्रकाशित होता रहता है ।विज्ञानं कथा लेखन में भी उन्हें महारत हासिल है ।

      


यहाँ मैं सबसे पहले समीर जी की नेशनल बुक ट्रस्ट से प्रकाशित चित्रात्मक कहानी पुस्तक “एक था दाना अनजाना ”की चर्चा करूंगा ।इस किताब में जिस ढंग से एक दूकान में बोरियों में भरे अनाज के दानों,चूहे और गौरैय्या के माध्यम से बरगद के महत्त्व को बताया गया है वह अद्भुत है ।बरगद का नन्हां बीज जिसे दूसरे अनाज के दाने ज्यादा महत्त्व नहीं देते थे क्योंकि वह सबसे छोटा था और उसके बारे में दूसरे अनाजों के दाने जानते भी नहीं थे ।बरगद के उस नन्हें दाने के बारे में जब गौरैय्या ने अन्य दानों को बताया तो सभी अनाज के दानों ने उस अनजाने नन्हें दाने को भी अपना साथी बना लिया ।इस एक छोटी सी पर मजेदार कहानी के माध्यम से लेखक ने बीजों –उनके अंकुरण—पौधा बनाने ---पौधों पर फूल आने—और अंत में फल आकर फिर बीज बनने की प्रक्रिया के चक्र को बहुत खूबसूरती के साथ बयान किया है ।

   


यह कहानी तो बच्चों को आकर्षित और आनंदित करेगी ही साथ ही इस्माइल लहरी द्वारा बनाये गए खूबसूरत चित्र और कवर पेज भी बच्चों को अपनी तरफ  आकर्षित करेंगे ।बच्चे निश्चित रूप से इस कहानी को पूरा पढ़े बिना छोड़ेंगे नहीं ।

          


आमतौर पर हिन्दी भाषा में बच्चों के लिए अर्थ यानि धन से रिलेटेड विषयों यानि बैंक,बाजार,हमारे देश की अर्थव्यवस्था जैसे विषयों को लेकर कहानियां या उपन्यास नहीं  लिखे गए हैं। अन्य भारतीय भाषाओं के बारे में मैं कह नहीं सकता । “माया वन में धन धना धन” समीर गांगुली द्वारा एक ऐसे ही विषय को लेकर लिखा गया उपन्यास है ।दरअस्ल यह बच्चों की एक फैंटेसी है ।जिसके माध्यम से शेयर बाजार,म्युचुअल फंड्स,शेयर की खरीदारी,म्युचुअल फंड में पैसे लगाने ,इन सभी के नफे नुकसान और उनके टेक्नीकल शब्दों आदि की जानकारी बच्चों को दी गई है ।कथा के मुख्य पात्र चार बच्चे –रिया,कोमल,एंडी और कबीर हैं ।जिन्हें एक आभासी कार द्वारा शेयर मार्केट की आभासी दुनिया की सैर कराई  गई है ।और इस सैर के माध्यम से ही रास्ते में उन्हें शेयर मार्केट,म्युचुअल फंड,निवेश,नफ़ा-नुकसान के बारे में बताने की कोशिश की गई है ।

    


समीर जी का यह प्रयास सराहनीय है ।ऐसे विषयों पर भी बच्चों के लिए किताबें लिखी जानी चाहिए ।इस किताब में कहानी को आगे बढ़ने का फार्मेट और भाषा भी काफी सहज है ।कुल मिलकर यह बच्चों  के लिए एक उपयोगी किताब है ।लेकिन मेरा व्यक्तिगत तौर पर यह भी विचार है कि इस उपन्यास में कंटेंट की मात्र बहुत ज्यादा है ।अब बच्चे इस कंटेंट में से कितना समझ सकेंगे कितना नहीं,कितना वो ग्रहण कर सकेंगे ये तो कुछ बच्चों को यह किताब पढ़वाकर उनका फीड बैक लेकर ही पता लगाया जा सकता है ।पूरी किताब एक तरह से देखा जाय तो प्रश्नोत्तर शैली में ही लिखी गई है ।इसमें आभासी कार में बैठे बच्चे हर नई चीज देख कर उसके बारे में प्रश्न पूछ रहे और उनके साथ गई गाइड उनके हर प्रश्न का उत्तर देकर उन्हें समझा रही ।मुझे लगता है समीर जी ने यदि इस उपन्यास में कंटेंट की मात्रा बीस प्रतिशत और मनोरंजन की मात्रा अस्सी प्रतिशत रखी होती तो शायद यह किताब बच्चों के लिए और बेहतर बन सकती थी ।

       


“मिशन ग्रीन वार” की यदि हम बात करें तो यह एक बेहतरीन वैज्ञानिक उपन्यास है ।यह ख़ुशी की बात है कि अभी हाल में ही हरिकृष्ण देवसरे न्यास द्वारा  समीर जी को इसी उपन्यास के लिए “डा०हरिकृष्ण देवसरे “पुरस्कार देकर सम्मानित भी किया जा रहा है।

       


इस उपन्यास में बाल और किशोर पाठकों को वर्त्तमान समय की  खेती में होने वाली समस्याओं से रूबरू कराया गया है ।साथ ही बच्चों को भविष्य में होने वाली खेती,उसमें इस्तेमाल होने वाली अनोखी तकनीकों,उनके प्रयोग से होने वाले फायदों को भी बताया गया है ।



उपन्यास की पूरी कथा वास्तु इसके मुख्या पात्रों—नरेश ,जुबिन, मोहन, शास्त्री सर,बैनर्जी सर,गौरी जोशी,अर्जुन आदि के इर्द गिर्द घूमती है ।इस उपन्यास में बच्चों,किशोरों के लिए रहस्य, रोमांच, उत्सुकता –यानि एक बाल उपन्यास के सभी तत्व मौजूद हैं ।कृषि कालेज से शुरू होकर उपन्यास की कहानी में कई उतर चढाव,कई मोड़ आते हैं और अंत में फिर कृषि कालेज पहुँच कर उपन्यास की कहानी पूरी होती है ।बीच में घटित होने वाली घटनाएँ बच्चों के अन्दर आगे की कहानी पढ़ने की उत्सुकता तो जगाती हैं साथ ही उन्हें रोमांच भी प्रदान करती हैं ।उपन्यास की भाषा शैली बहुत सरल,सहज और प्रवाहमय है ।निश्चित ही समीर जी का यह उपन्यास बाल और किशोर पाठकों को पढ़ने में आनंद आएगा ।

      


यहाँ मैं समीर जी द्वारा लिखे गए एक और मजेदार उपन्यास की चर्चा करूंगा ।ये उपन्यास है भारत सरकार के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित “रंगीली बुलेट और वीर” ।यह अद्भुत उपन्यास है ।इसका मुख्य पात्र है वीर जो मुम्बई से गरमी की एक महीने की छुट्टियाँ बिताने अपने पापा मम्मी के साथ अपने दद्दू फ़ौज से रिटायर्ड ब्रिगेडियर के पास देहरादून के एक गांव में जाता है ।वीर के मम्मी पापा तो एक हफ्ते बाद वहां से वापस लौट गए ।लेकिन वीर पूरे एक महीने तक उस खूबसूरत गांव में रहता है ।

       


इस पूरे एक माह के प्रवास के दौरान उसने वहां बहुत कुछ देखा बहुत कुछ समझा ।उसने देखा कि ब्रिगेडियर साहब ने किस तरह गांव वालों के सहयोग से उस गांव को एक साफ़ सुथरा आदर्श गांव बना दिया था । उस गांव में वीर के कई नए दोस्त भी बने ---रंगीली चिड़िया,बुलेट जैसा समझदार कुत्ता ,बातूनी पेड़,मेढक,टिड्डे और भी बहुत से ।वीर रोज सबेरे सबेरे बुलेट और रंगीली के साथ गांव घूमने जाता ।अपने दोस्तों के साथ रोज के इस भ्रमण के दौरान भी उसने बहुत कुछ देखा बहुत कुछ समझा ।हेलीकाप्टर “ड्रैगनफ्लाई”,की मजेदार उड़ान,कीट पतंगों का नाच ,गाना,बजाना,उड़ने वाले मेढक और मछलियाँ,बंदरों की सभा,इन सभी के साथ गाँव का पारंपरिक मेला भी ।इन सब में वीर को मजा,आनंद तो आया ही साथ ही बहुत सी सीख भी मिली ।

     


प्रकृति से प्रेम करने ,उसका संरक्षण करने,वन्य जीवों ,कीट –पतंगों के प्रति दया और मित्रता का भाव रखने,पालतू जानवरों से मित्रता भाव रखने जैसी सीख ।कुल मिलाकर समीर गांगुली की यह किताब भी निश्चित रूप से बच्चों को आनंदित करने के साथ ही बहुत कुछ सिखाएगी  भी ।

  


समीर गांगुली की तीन किताबें और भी मेरी आलमारी से झाँक रही हैं ।1-जेड जुइंग की डायरी 2- घड़ी घर के समय प्रहरी 3- एक गुलाबी भैंसा अलग सा ।ये तीनों ही किताबें फ्लाईड्रीम पब्लिकेशन से प्रकाशित हुई हैं ।लेकिन अभी मैं इन्हें पढ़ नहीं सका हूँ ।इसलिए इन पर चर्चा आगे कभी करूंगा ।



समीर गांगुली की अन्य किताबें भले ही अभी तक मैं पढ़ नहीं पाया हूँ लेकिन पढूंगा तो जरुर ही ।फिलहाल यह कहने में मुझे कोई संकोच नहीं कि समीर गांगुली के सम्पूर्ण बाल साहित्य के लेखन में विषयों की जो विविधता ,जो प्रयोगधर्मिता और नवाचार दिखाई पड़ता है ।वह आज के समय के कम बाल साहित्य लेखकों में देखने को मिलता है ।उनकी किताबें “एक था दाना अनजाना” हो या फिर “मिशन ग्रीन वार”, “रंगीली बुलेट और वीर”,या फिर “माया वन में धन धना धन” ---सभी किताबें लीक से हटकर एकदम नए नए विषयों पर लिखी गई कथा पुस्तकें हैं।आशा है समीर गांगुली भविष्य में भी ऐसी ही प्रयोगधर्मिता अपनाते हुए अनछुए विषयों को अपने बाल कथा साहित्य में स्थान देकर बाल साहित्य को समृद्ध करते रहेंगे ।



०००



डा०हेमन्त कुमार



9451250698

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बच्चों को जरूर पढाएं ये किताब

गुरुवार, 6 नवंबर 2025

 

बच्चों को जरूर पढाएं ये किताब




पुस्तक : चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं



(बाल कविता संग्रह)



कवयित्री :रोचिका अरुण शर्मा



प्रकाशक : जी एस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स



नवीन शाहदरा,नई दिल्ली -110032



हिंदी में यदि सबसे ज्यादा किसी विधा में  लेखन हो रहा है तो वह कविता में ।चाहे वह मुख्य धारा का साहित्य हो या फिर बाल साहित्य ।लेकिन दिक्कत वाली बात यह है कि हिंदी बाल साहित्य में बाल कविताएं काफी प्रचुर मात्र में लिखी जाने के बावजूद बाल कविताओं की किताबें बहुत कम छपती हैं ।बाल कविताएं सिर्फ अख़बारों के या पत्रिकाओं के पन्ने पर अधिक दिखती हैं। या पुस्तकाकार छपती भी हैं तो प्रोडक्शन की दृष्टि से बहुत स्तरीय नहीं होतीं। क्योंकि प्रकाशक उन किताबों में कवर तो आकर्षक लगा देते हैं लेकिन अन्दर के पृष्ठों पर सिर्फ टेक्स्ट या बाल कविताएं ही रहती हैं ।कोई  रंगीन चित्र या रेखांकन नहीं ।और कविताएं भी छोटे फांट साइज में ।जबकि बाल कविताओं के पाठक के लिए तो रंग बिरंगे चित्रों वाली खूबसूरत किताबें होनी चाहिए ।फांट साइज भी बड़ा होना चाहिए।लेकिन दुखद स्थिति यह है कि कोई प्रकाशक बाल कविताओं की किताबों पर चित्रांकन कराने के लिए पैसा खर्च नहीं करना चाहते।

   


इधर मेरे पास कुछ बाल कविताओं की किताबें भी आई हैं ।इनमें से एक है “चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” ।इस बाल कविता संकलन की कवयित्री हैं पेशे से इंजिनियर रोचिका अरुण शर्मा ।रोचिका की कहानियां तो मैंने बहुत पढ़ी हैं बच्चों की भी बड़ों की भी ।लेकिन उनकी बाल कविताओं से परिचय इस संकलन के माध्यम से ही हुआ ।

      


“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” संकलन देखा कर ही लगता है कि इसमें कवयित्री,चित्रकार और प्रकाशक तीनों ने ही मेहनत की है ।यही कारण है कि प्रोडक्शन की दृष्टि से यह एक सुन्दर किताब के रूप में बाल पाठकों के लिए तैयार हुई है ।संभवतः इसीलिए मैं भी पहले इस किताब की कविताओं के बारे में बात न करके पहले इसकी खूबसूरती की ही चर्चा कर रहा ।

    


प्रोडक्शन की दृष्टि से इस किताब की सबसे बड़ी विशेषता है –हर कविता के सामने बने हुए ब्लैक एंड व्हाईट या श्वेत श्याम रेखांकन या चित्र ।साथ ही कविताओं की बड़ी फांट साइज ।ये चित्र किताब को आकर्षक तो बना ही रहे उससे बड़ी बात एक और है कि ये चित्र बच्चों को भी कुछ क्रिएटिव करने का स्पेस दे रहे ।रोचिका जी से बात होने पर उन्होंने इस ओर इंगित भी किया कि सभी चित्र इस हिसाब से बनाए गए हैं कि बच्चे उनमें अपने हिसाब से मनचाहा रंग भी भर सकें ।साथ ही किताब के अंत में दो पेज बच्चों के लिए छोड़ा भी गया है जिसमें वो भी चाहें तो ऐसी ही कोई कविता या कुछ और लिख सकते हैं । इस तरह से देखा जाय तो बाल गीतों की यह किताब बच्चों के लिए एक अच्छी एक्टिविटी बेस्ड किताब कही जा सकती है । यद्यपि इस बात का उल्लेख किताब में कहीं नहीं किया गया है जबकि किताब के शुरू में या अंत में बच्चों के लिए इस तरह का निर्देश दिया जा सकता था ।इसे मैं पुस्तक की कमी नहीं कहूँगा क्योंकि आगे इसका रीप्रिंट होने पर बच्चों के लिए यह निर्देश किताब के शुरू में ही कहीं दी जा सकते हैं ।

    


जहां तक कविताओं की बात है तो इस बाल कविता संकलन में रोचिका अरुण शर्मा की कुल तीस कविताएं संकलित हैं ।रोचिका की इन कविताओं में वह सब कुछ है जो बच्चों को पसंद आएगा ।इनकी कविताओं में बच्चों का प्रिय खेल है,समाज है,परिवार है,मानवीय रिश्ते हैं,प्रकृति है,जीव जंतु हैं,बाल मनोभाव हैं और भी बहुत कुछ ऐसा जो बच्चों को आनंदित करेगा,गुनगुनाने को प्रेरित करेगा और कहीं कहीं उन्हें गुदगुदाएगा भी ।वैसे तो “चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं ”संकलन की सभी कविताएं बाल मनोभावों के अनुकूल हैं और उन्हें आनंद भी देंगी ।लेकिन मैं यहां रोचिका अरुण शर्मा की कुछ कविताओं का उल्लेख करना चाहूँगा ।

    


इस संकलन की पहली ही कविता है “मेरी मां” ।मां के लिए बच्चों की तरफ से यह बेहतरीन अभिव्यक्ति है –रोचिका जी की इस अभिव्यक्ति की बानगी इन पंक्तियों में देखी  जा सकती है ---




गिरूँ तो धूल पोंछे वो,खड़ा करती पकड़ बाहें



मुझे निस दिन निखारे वो,सुझाए नित नई राहें।

    



आज बच्चे इस कदर स्कूली बस्ते के बोझ,कंप्यूटर,मोबाइल में उलझते जा रहे हैं कि उनका बचपन खेलों की मौज मस्ती कहीं गुम होती जा रही है ।संकलन की एक कविता “आँख मिचौली” ऐसे ही एक पारंपरिक खेल के बारे में बच्चों को बताने के साथ ही कविता के माध्यम से इस पारंपरिक खेल को बचाने की भी कोशिश कही जा सकती है ।इसी कविता की ये पंक्तियाँ देखिए –



आओ खेलें आँख मिचौली,बांधो आंखों पर पट्टी



पास जो आए उसको छू लूँ भूलूं सब झगड़ा कट्टी।  

       



इसी तरह “दादा जी की ऐनक” संयुक्त परिवार ,रिश्तों और परिवार की गर्माहट,खुशियों और सार्थकता को बताने वाली एक खूबसूरत कविता है ।बच्चों को स्कूल के दिनों के बीच में मिलने वाली छुट्टियों से बहुत प्यार होता है ।स्कूलों में जब छुट्टियां होनी होती हैं तो बच्चे पहले से ही उन छुट्टियों को बेहतरीन और मजेदार ढंग से बिताने की योजना बनाने लगते हैं ।बच्चों की ऎसी ही योजनाओं की अभिव्यक्ति “छुट्टियाँ आई हैं” कविता की इन पंक्तियों में देखी जा सकती हैं---



“नाना नानी बुला रहे हैं,अरे छुट्टियाँ आई हैं



बड़ी बुआ मिलने को आईं खूब खिलौने लाई हैं ।



दादी जी का मुखड़ा चमका,चाचा-चाची भी आओ



दादा जी ने मूंछे तानीं पोते पोती दिखलाओ ।”

 



इस कविता में बच्चों की छुट्टियां बिताने के आनंद के साथ ही पूरे संयुक्त परिवार की महाता और खुशियों को भी रेखांकित किया गया है ।

 


इसी ढंग की कुछ और उल्लेखनीय कविताएं इस संकलन में हैं ।“अनुशासन रख लूंगा” कविता में बच्चा खुद अपने मां बाप से कह रहा की मोबाइल के साथ वो समय का ताल मेल बना कर चलेगा और समय का सदुपयोग करेगा । “मेहनत का फल” कविता के माध्यम से कवयित्री ने बच्चों को कृषि के प्रति जागरूक करने के साथ ही श्रम के महत्त्व को भी बताया है ।“रबर-पेन्सिल” कविता में रबर पेन्सिल की लड़ाई या कहें वर्चस्व की लड़ाई निश्चित ही बाल मन को भाएगी ।

  


संकलन की जिन दो अन्य महत्वपूर्ण कविताओं का उल्लेख करना जरूरी है और जिनके बिना इस किताब की चर्चा अधूरी रह जाएगी ।वो कविताएं हैं—“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” और दूसरी कविता  “किसने रीत बनाई” । “चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” में जहां बच्चों को प्रदूषण और पर्यावरण के बारे में बताया गया है वहीं यह भी बताया गया है कि आज हमारे चारों और की हवा इतनी प्रदूषित और गंदी हो रही कि आदमी क्या पशु-पक्षियों को भी पर्यावरण के इस प्रदूषण के गंभीर परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं ।कविता की शुरू की ही पंक्तियों में हम यह देख समझ सकते हैं—



“सारी चिड़ियाँ गईं कहां पर नजर कहीं ना आएं



रोज जगाती गीत सुना कर ना चहकें ना गाएं ।



बंटू ने खिड़की से झांका बाहर धुंआ-धुंआ है



कोको भी तो खांस रहा है भौंके चुआं चुआं है ।”




इसी तरह “किसने रीत बनाई” कविता में पारंपरिक पहनावे को बताते हुए बच्चों के मन में उठने वाले प्रश्नों को भी जगह दी गई है –



“मम्मी,दीदी,दादी क्यों ना मनमौजी सी होतीं



जो जी चाहे वही पहनतीं जबरन रीत न ढोतीं ।”



एक तरह से देखा जाय तो पहनावे के माध्यम से इस कविता में बालक-बालिका में किए जा रहे भेद को भी उठाया गया है ।बच्चे के मन में भी प्रश्न उठते हैं कि आखिर पहनावे के मामले में सारी छूट लड़कों या पुरुषों को ही क्यों दी जा रही ? दीदी,दादी,मम्मी को क्यों नहीं ?वो अपनी मन पसंद कपड़े क्यूं नहीं पहन सकतीं ?



रोचिका अरुण शर्मा के इस संकलन की सभी कविताएं बच्चों के लिए पठनीय तो हैं हीं और वो बच्चों को आनंदित,आह्लादित करने के साथ ही उन्हें प्रकृति,जीव जंतुओं,मानव जीवन,पर्यावरण,मानवीय रिश्तों ,पारंपरिक  खेलों के प्रति निश्चित ही संवेदनशील भी बनाएंगी ।साथ ही उन्हें किताब के खूबसूरत चित्रों को अपने मनचाहे रंगों में रंगने का भी मौक़ा मिलेगा,अपने मन की कुछ कविताओं को किताब के अंतिम दो पृष्ठों पर शब्दांकित करने का भी अवसर मिलेगा ।बशर्ते इस खूबसूरत किताब के अगले रीप्रिंट में बच्चों के लिए ही एक छोटा सा निर्देश भी दिया जाय ।कवयित्री रोचिका अरुण शर्मा जी के साथ ही चित्रकार दिलीप शर्मा जी और प्रकाशक को बहुत बधाई ।



000



समीक्षक : डा0 हेमन्त कुमार

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पारिवारिक रिश्तों के बुनावट की कहानियां “एक तलाश अधूरी सी ” ।

बुधवार, 8 अक्टूबर 2025

 

पुस्तक समीक्षा

पारिवारिक रिश्तों के बुनावट की कहानियां “एक तलाश अधूरी सी ”

          



                   

                    

                   पुस्तक : एक तलाश अधूरी सी



(कहानी संग्रह)



लेखिका :डा०कविता श्रीवास्तव



प्रकाशक :न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन



सी-515,बुद्ध नगर,इन्द्रपुरी



नई दिल्ली-110012

                



डा०कविता श्रीवास्तव का यह प्रिंट रूप में पहला कहानी संग्रह प्रकाशित हुआ है।वैसे तो वो पिछले लगभग चार दशकों से आकाशवाणी इलाहाबाद के विभिन्न कार्यक्रमों के लिए कहानियां लिख रही हैं।लेकिन उन्होंने अभी तक इन कहानियों को कभी प्रकाशित करवाने का प्रयास नहीं किया था।परिवार के सदस्यों के द्वारा काफी कहने पर उन्होंने ये कहानियां संकलन के लिए दिया ।कारण जो भी रहा हो अब उनका यह संग्रह आ चुका है और उसका साहित्य जगत में स्वागत होना ही चाहिए।

    


बताता चलूं कि कविता श्रीवास्तव मूल रूप से गणितज्ञ हैं और उन्होंने इलाहाबाद के कुलाभास्कर डिग्री कालेज में लगभग तीन दशक तक अध्यापन कार्य करने के पश्चात सेवानिवृत्त हुई हैं।

  


“एक तलाश अधूरी सी” कहानी संग्रह में डा०कविता श्रीवास्तव की कुल 15कहानियां संकलित हैं।“विडम्बना”,“एक अनकहा दर्द”,“अपराध बोध”,“एक तलाश अधूरी सी”,“हौसलों के पंख”,“तमाशा”,“अस्तित्व”,“क्यों नहीं बजता अब कोई फोन”,“नीड़”,“दर्द से सुकून तक”,“कैनवास जिन्दगी का”,“एक मुट्ठी धूप”, “दूरियां-नजदीकियां”,“एक नई इबारत”,“फैसला” ।



इन कहानियों का सम्यक रूप से विश्लेषण करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि डा०कविता श्रीवास्तव मुख्य रूप से पारिवारिक रिश्तों,रिश्तों में आ रही दरारों,रिश्तों में समाप्त होती जा रही गर्माहट,सामजिक और मानवीय मूल्यों के विघटन की कथाकार हैं।इन्होंने अपने कहानी संग्रह की शुरुआत में ही “अपनी बात” में लिखा भी है –“कहानियां,जैसा मैं समझती हूं हमारी-आपकी,इनकी-उनकी जिन्दगी के अलग-अलग रंगों का अंकन होती हैं।ये कहीं अलग से नहीं आती । ये तो हमारे आपके बीच से ही पनपती हैं ।सच तो यह है कि हर व्यक्ति अपने आप में जाने कितनी कहानियां समेटे होता है ।इन्हें हम देखते हैं,सुनते हैं,समझते हैं और साझा भी करते हैं ।इसी प्रक्रिया में जब कोई इन्हें महसूस करके,यथार्थ और कल्पना के धागों में पिरो,भावनाओं-संवेदनाओं के रंगों से सजाकर कलमबद्ध करता है,तो जन्म होता है एक कहानी का ।”(एक तलाश अधूरी सी -पृष्ठ-7)

    


वैसे तो इनके इस संग्रह में सभी कहानियां बेहतरीन और पठनीय हैं जो पाठकों से संवाद करती हुई चलती हैं ।लेकिन कुछ कहानियों का उल्लेख यहां विशेष रूप से किया जाना जरूरी है जिससे इस कहानी संग्रह की तासीर या कहें रुख का पता चल सकता है ।



संग्रह की पहली ही कहानी “विडम्बना”की बात अगर हम करें तो उसमें दो वर्गों का प्रतिनिधित्व हमें दिखाई देता है ।एक निचले तबके का और दूसरा मध्य वर्ग का ।निचले तबके का प्रतिनिधित्व  बढ़ई बिरजू कर रहा और मध्य वर्ग का एक कार वाला परिवार ।दोनों ही वर्गों के परिवारों की अपनी मजबूरियां हैं ।दोनों परिवार के पिताओं की अपनी जरूरत है,जिसके इर्द-गिर्द इस कहानी का ताना बाना बुना गया है ।बढ़ई बिरजू गाँव घर छोड़ कर शहर में अपने हुनर से कुछ पैसा कमा कर परिवार का पेट पालने आया है ।उसकी झोपड़ी के सामने एक दिन एक चमचमाती कार रूकती है और उसका मालिक आकर उसके पास में ही खेल रहे छोटे बच्चे की तीन पहिये वाली लकड़ी की गाड़ी का दाम पूछता है । बिरजू उससे कहता भी है कि यह गाडी तो बहुत पुरानी है वह उनके लिए दूसरी नई गाड़ी बना देगा।लेकिन वो व्यक्ति उसी समय वही गाड़ी लेना चाहता था । बिरजू उसका दाम तीन सौ कहता है तो वह व्यक्ति तुरंत उसके हाथ पर तीन सौ रुपये रख देता है ।लेकिन उसका छोटा बच्चा गाड़ी न देने की जिद पकड़ लेता है ।उधर जब उस व्यक्ति से पता चलता है कि उसका बेटा चार साल का हो चुका है और किसी बीमारी के कारण अभी भी वो खड़ा भी नहीं हो सकता । तो बिरजू अपने रो रहे बच्चे से गाड़ी छीन कर उसे पकड़ा देता है और वो लोग चले जाते हैं ।

     


मात्र इतनी छोटी सी घटना को लेकर लेखिका ने जितनी खूबसूरती से इस कहानी का ताना बाना बुना है वह काबिले तारीफ़ है ।दोनों पिताओं की अपनी मजबूरियां हैं ।मध्यवर्गीय (कार वाले )पिता की मजबूरी कि उसका बेटा किसी तरह गाड़ी के सहारे खडा होकर चलने लगे ।उसकी विडम्बना ये है कि इतना धन दौलत पास में होने के बावजूद उसका बच्चा चल नहीं सकता ।वहीं दूसरी तरफ बिरजू की मजबूरी यह कि उसने सिर्फ कुछ रुपयों के लालच में अपने प्यारे बेटे की प्यारी गाड़ी बेच दी ।

     


इसी संकलन की दूसरी कहानी है “अपराध बोध” ।इस कहानी में एक परिवार में वृद्ध व्यक्ति के अकेलेपन और उसके नौकरी पेशा बेटे से उसके वैचारिक और मानसिक अंतर्विरोधों को बखूबी दर्शाया गया है ।वृद्ध केशव प्रसाद वर्मा की पत्नी का निधन हो चुका है और वो दूसरे शहर में नौकरी करने वाले अपने बेटे के परिवार के साथ रहने लगते हैं ।सर्दियों के दिन में किसी दिन बिस्तर पर बैठे बैठे चाय पीते समय उनके हाथों से चाय बिस्तर पर गिर जाती है ।इस पर उनका बेटा उन्हें ताने देता है और खरी खोटी सुना देता है । यद्यपि उसकी पत्नी और बच्चे उसे आफिस भेज कर बिस्तर सुखा देते हैं लेकिन केशव वर्मा जी के अंदर यह घटना एक अपराध बोध बन कर ठहर सी जाती है ।



वृद्ध केशव वर्मा की मानसिक पीड़ा और उदासी को लेखिका ने बहुत खूबसूरती के साथ इन शब्दों में व्यक्त किया है—“चाय पीते प्रकट में सहज दिख रहे बाबू जी का मन उदास था ।यह पहली बार था कि बाबू जी यहां बेटे के घर आए थे और पत्नी साथ नहीं थी ।यहां क्या उनकी पत्नी का साथ हमेशा हमेशा के लिए छूट गया था ।-----सो अब उनका साथ न होना पल-पल ही सता रहा था बाबू जी को ।”(पृष्ठ-24)

     


वृद्ध केशव प्रसाद की पीड़ा,अकेलेपन और पत्नी से बिछुड़ जाने के दर्द को लेखिका ने इन शब्दों में व्यक्त किया है—“धूप अच्छी निकल आई थी ।पर उनके संतप्त मन को यह गुनगुनी धूप भी सुकून न दे सकी ।बार-बार आंखें भर आ रही थीं ।याद आ रहा था अपना घर ।पत्नी की बहुत-बहुत याद आ रही थी --- ।”(पृष्ठ-27)

   


यह दरअसल एक अकेले केशव प्रसाद वर्मा की ही कहानी नहीं है ।उस पात्र के माध्यम से लेखिका ने हमारे समाज के लाखों ,करोड़ों परिवारों में रहने वाले एकाकी अथवा पत्नी के साथ रह रहे बुजुर्गों की पीड़ा,मानसिक अवसाद और संत्रास को अभिव्यक्ति दी है ।

 


इसी तरह यहां मैं लेखिका की एक और कहानी का उल्लेख करना चाहूँगा । जिसमें दिखाया गया है कि आज भौतिकता की अंधी दौड़ में कोई व्यक्ति किस हद तक गिर सकता है ।इस कहानी का शीर्षक है “अस्तित्व” ।कहानी एक पति रजत और पत्नी हेमा की है ।रजत एक बेहद महत्वाकांक्षी व्यक्ति है।पैसा, नौकरी,नौकरी में प्रमोशन की उसके अन्दर इतनी बड़ी महत्वाकांक्षा है कि वह एक दिन अपने बॉस को घर पर डिनर के लिए बुलाता है और अपनी पत्नी हेमा को अपने बॉस के सामने परोसने की कोशिश करता है ।अब मानवीय रिश्तों और मानवीय मूल्यों का इससे बड़ा पतन ,यथार्थ और क्या हो सकता है कि एक पति अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने के लिए अपने अधिकारी से अपनी पत्नी को शारीरिक सम्बन्ध बनाने के लिए मजबूर करने की कोशिश करता है ।मजबूर पत्नी के सारे दर्द और फ्रस्ट्रेशन को लेखिका ने कहानी के अंत में कुछ इस प्रकार दर्ज किया है--- “रजत ने उसे झिंझोड़ा तो झटक दिया उसने रजत का हाथ ।---शेरनी सी बिफर पड़ी वह –हाथ मत लगाना मुझे तुम । शर्म आ  रही है कि तुम मेरे पति हो ।मेरे रक्षक।सौदा कर डाला तुमने मेरा । धिक्कार है तुम्हें ---”कहती हुई हेमा रो पड़ी ।उसकी आंखों से आंसुओं की अविरल धारा बह रही थी ।इन आंसुओं में दर्द था,पीड़ा थी,अथाह व्यथा थी ।पर इन्हीं आंसुओं में जन्म ले रही थी उसके अंतर में सोई पड़ी वह शक्ति जो उसे अपने अस्तित्व को चुनौती देने वाले हर प्रहार को परास्त करने का हौसला दे रही थी ।”(पृष्ठ-51)

    


जैसा मैंने ऊपर शुरू में ही कहा है कि डा० कविता श्रीवास्तव मुख्य रूप से पारिवारिक रिश्तों,रिश्तों में आ रही खटास ,परिवारों में दरक रहे रिश्तों की रचनाकार हैं ।उनकी हर कहानी हमारे सामने परिवार और उसके विघटन,रिश्तों की दरारों को जिस खूबसूरती के साथ पेश करती है वह अद्भुत है ।हर कहानी अपने में एक अलग ढंग से पारिवारिक रिश्तों के इस विघटन को रेखांकित करती है ।इस दृष्टि से इनकी हर कहानी बेजोड़ है ।

   


जहां तक भाषा और शैली का प्रश्न है।इन कहानियों की भाषा इतनी सरल, सहज और प्रवाहमय है,साथ ही हर कहानी की बुनावट और कहन का ढंग इतना अद्भुत है जो निश्चित ही पाठकों को अपनी तरफ आकर्षित करेगा और उन्हें बाँध कर रखेगा ।

   


एक बात अवश्य मैं जो कविता श्रीवास्तव का पहला कहानी संग्रह होने के नाते -- उन्हें एक सलाह के तौर पर देना चाहूँगा -- वो यह कि परिवार और रिश्तों के विघटन के साथ ही हमारे समाज में और भी बहुत कुछ घटित हो रहा है –मसलन—विश्वविद्यालयों की राजनीति,अध्यापकों की खेमेबाजी,देश की दलगत राजनीति और वर्त्तमान राजनीतिज्ञों के चेहरों पर लगे तरह तरह के मुखौटे ...एक नहीं अनेकों तरह के—धार्मिक,राजनैतिक,सामाजिक ।भ्रष्टाचार में लिप्त अदृश्य मुखौटे भी---या ऐसे ही और भी बहुत से विषय हो सकते हैं कहानियों के ।इन विषयों पर भी वो अपनी कलम चलाएं तो हिंदी कथा साहित्य को निश्चित रूप से वो एक नई दिशा प्रदान कर सकने में पूरी तरह सक्षम होंगी ।

                      


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समीक्षक : हेमन्त कुमार



लेखिका :डा० कविता श्रीवास्तव 



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लेबल

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