खूबसूरत बाल कविताओं का खजाना----- रंग बिरंगी दुनिया
सोमवार, 29 दिसंबर 2025
पुस्तक समीक्षा
खूबसूरत बाल कविताओं का खजाना----- रंग बिरंगी दुनिया
पुस्तक :दुनिया रंग
बिरंगी
(बाल विज्ञान कविताएँ)
लेखक :अरविन्द दुबे
प्रकाशक :प्रकाशन विभाग
भारत सरकार
हिंदी बाल साहित्य में विज्ञान कथाएँ,उपन्यास
,नाटक तो बहुत लिखे जा रहे हैं और प्रकाशित भी हो रहे हैं ।लेकिन इनकी तुलना में
विज्ञान और उसका परिचय देने वाली कविताएँ बहुत कम लिखी गई हैं ।लिखी भी गई हैं तो
फुटकर रूप में पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं ।लेकिन एक पुस्तक के रूप
में संकलित होकर विज्ञानं कविताएँ कम ही सामने आई हैं ।
पिछले दिनों डा0 अरविन्द दुबे की एक विज्ञानं
पर आधारित बल कविताओं का संकलन “दुनिया रंग –बिरंगी” प्रकाशन विभाग से प्रकाशित
होकर आई है ।इसमें बच्चों के लिए कुल 27बाल कविताएँ संकलित
हैं ।जिनमें ज्यादातर प्रकृति,धरती,सूरज,चाँद,बर्फ ,आंधी जैसे विषयों पर आधारित
हैं ।मतलब इसमें हमारी पूरी प्रकृति—असमान—भूमंडल ,यहाँ घटित होने वाली घटनाओं को
कविता के रूप में प्रस्तुत किया गया है ।साथ ही उनके कारणों को भी बताने की कोशिश
की गई है कि ये प्राकृतिक घटना या परिवर्तन कैसे होते हैं ।मसलन बच्चा अगर सूरज देखता
है तो उसके मन में सवाल उठता है कि सूरज निकलता कैसे है ?कहाँ से आटा है ?ये हमें
गरमी कैसे देता है ?और बच्चों के मन में उठाने वाले इन सवालों का जवाब भी उसे
कविता के रूप में ही मिलता है ।
एक खास
बात और हर कविता के सामने वाले पेज पर उस चीज से या उसमें होने वाली घटनाओं को भी
चित्र बना कर दिखाया गया है कि ये घटना कैसे हो रही ?इसके पीछे क्या वैज्ञानिक
कारण हैं ।
अब “सूरज
कैसे गर्मी देता “कविता में शुरू में बच्चों के मन में उठने वाले प्रश्न को लिखा
गया है –
“कैसे सूरज रोज चमकता
कैसे गर्म धूप है आती
यह गर्मी में बदन जलाती
और सर्दी में मन को भाती।”
फिर इसी कविता में आगे बच्चों के मन में उठने
वाले प्रश्न का उत्तर भी दिया गया है—
“सूरज एक गैस का गोला
अंदर गुस्सा बहार भोला
भरा हुआ जलती गैसों से
सूरज के ईंधन का झोला ।
जब ये गैसें होती फ्यूज
सूर्य की भट्ठी दहके
पैदा होता है प्रकाश और
बेहिसाब गर्मी निकले ।”
ये तो एक कविता की बात ।और आगे बढ़ने पर आगे की कविताओं में भी बताया गया है कि सूरज किस दिशा से निकल कर किस दिशा को जाता है ।इसी प्रकार--“चम् चम् चमके चंदा,चाँद पे धब्बे क्यों ?आकार बदलता रहता चंदा जैसी कविताओं में चन्द्रमा में छुपे गूढ़ रहस्यों को भी बच्चों को बहुत सरल भाषा में बताने का प्रयास किया गया है ।अब बचपन से ही जो बच्चा माँ की लोरियों में,कहानियों में चाँद के बारे में,उसमें छुपी बुढ़िया के बारे में सुनता रहा हो उसे जब कविताओं के माध्यम से चाँद से जुड़े रहस्यों,उसकी वास्तविकताओं को बताया जाएगा तो निश्चित ही वह उन बैटन को समझ सकेगा ।
इस
संकलन में एक तरफ सूरज,चाँद की कविताएँ हैं तो चंद्रग्रहण सूर्यग्रहण जैसी प्राकृतिक
घटनाओं को भी कविताओं के माध्यम से बच्चों तक पहुँचाने की कोशिश की गई है ।दिन –रत
,तारों की बातें हैं तो बारिश,बरफ,हिमपात,बिजली गिरने जैसी घटनाओं को भी कविताओं
में बुना गया है ।प्रकृति की इन्हीं घटनाओं के साथ ही शहद बनने की प्रक्रिया,मछली
रानी,बिल्ली की आँखें चमकीली,जैसी कविताओं में कुछ जीवों के अजूबे रहस्यों से भी
पर्दा उठाया गया है ।
डा०अरविन्द
दुबे वैसे तो पेशे से बच्चों के एक कुशल चिकित्सक हैं ।लेकिन इसके साथ ही वो विज्ञानं
साहित्य के एक सशक्त हस्ताक्षर भी हैं ।उनकी दैनिक जीवन में विज्ञानं पर आधारित कई
पुस्तकें अब तक प्रकाशित हो चुकी हैं ।जिनमें विज्ञानं कथाएँ,उपन्यास,नाटक लेख सभी
कुछ हैं ।और ज्यादातर बच्चों या किशोरों के लिए ।डा०अरविन्द ने रेडियो के लिए कई विज्ञानं
पर आधारित सीरिज लिखी हैं ।शैक्षिक दूरदर्शन केंद्र लखनऊ के लिए कई शैक्षिक फिल्मों
की स्क्रिप्ट लिखने के साथ बतौर प्रजेंटर भी सैकड़ों कार्यक्रमों में अपना योगदान किया
है ।एक तरह से विज्ञानं साहित्य और खासकर बल विज्ञानं साहित्य का उनके पास चालीस सैलून
से ज्यादा का अनुभव है ।इसी अनुभव के आधार पर उन्होंने अपनी ये बल विज्ञानं कविताएँ
रची हैं ।हिंदी के बल साहित्य के पाठकों और विद्वानों द्वारा निश्चित ही इस अनोखी किताब
का स्वागत होना चाहिए ।मुझे तो लगता है इनमें से कुछ कविताएँ प्राथमिक कक्षा की पाठ्य
पुस्तकों में भी रखी जानी चाहिए ।जिससे बच्चे
विज्ञान के प्रति आकर्षित हों विज्ञान से जुड़ें भी ।उनके अंदर वैज्ञानिक सोच का विकास
भी हो सके ।
इस पुस्तक का एक थोडा निगेटिव पक्ष भी है । वो यह
की डिजाईनिंग में (चित्रों के रंग संयोजन) के स्तर पर बहुत मेहनत नहीं की गई है ।जिससे
बहुत बेहतरीन कंटेंट ,बहुत खुबसूरत कवितायेँ होने के बाद भी ये किताब उतनी बेहतरीन
नहीं बन पाई जितनी होनी चाहिए थी ।पुस्तक में कई पृष्ठों पर बैकग्राउंड का रंग इतना
चटक लगाया गया है जिसका प्रभाव काले रंग के फांट वाले अक्षरों पर पड़ा है और वो कहीं
दब रहे हैं ।यदि उन गहरे रंग वाले पेज पर अक्षरों का फाँट कलर रिवर्स में रखा गया होता
तो अक्षर शब्द उभर कर दीखते और किताब और आकर्षक बन सकती थी ।पर इसमें लेखक का कोई दोष
नहीं ।उसने तो जब प्रकाशन संस्था को पाण्डुलिपि सौंप दी तो ये प्रकाशन संस्थान,वहां
के संपादक,चित्रकार या डिजाइनर की जिम्मेदारी है की वो किताब को कितनी आकर्षक और बेहतरीन
बनाएं ।उम्मीद है प्रकाशन विभाग इस किताब की आगे की आवृत्तियों पर इस तरफ ध्यान देंगे
।------बहरहाल डा०अरविन्द दुबे जी से यह उम्मीद है कि भविष्य में भी अपने लेखन से हिंदी
बल साहित्य को यूं ही समृद्ध करते रहेंगे ।
०००
डा०हेमन्त कुमार
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