बच्चों को जरूर पढाएं ये किताब
गुरुवार, 6 नवंबर 2025
बच्चों को जरूर
पढाएं ये किताब
पुस्तक :
चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं
(बाल कविता संग्रह)
कवयित्री
:रोचिका अरुण शर्मा
प्रकाशक : जी
एस पब्लिशर डिस्ट्रीब्यूटर्स
नवीन शाहदरा,नई
दिल्ली -110032
हिंदी में यदि सबसे
ज्यादा किसी विधा में लेखन हो रहा है तो
वह कविता में ।चाहे वह मुख्य धारा का साहित्य हो या
फिर बाल साहित्य ।लेकिन दिक्कत वाली बात यह है कि हिंदी बाल साहित्य में बाल कविताएं
काफी प्रचुर मात्र में लिखी जाने के बावजूद बाल कविताओं की किताबें बहुत कम छपती
हैं ।बाल कविताएं सिर्फ अख़बारों के या पत्रिकाओं के पन्ने पर अधिक दिखती हैं। या पुस्तकाकार
छपती भी हैं तो प्रोडक्शन की दृष्टि से बहुत स्तरीय नहीं होतीं। क्योंकि प्रकाशक
उन किताबों में कवर तो आकर्षक लगा देते हैं लेकिन अन्दर के पृष्ठों पर सिर्फ
टेक्स्ट या बाल कविताएं ही रहती हैं ।कोई रंगीन चित्र या रेखांकन नहीं ।और कविताएं भी
छोटे फांट साइज में ।जबकि बाल कविताओं के पाठक के लिए तो रंग बिरंगे चित्रों वाली
खूबसूरत किताबें होनी चाहिए ।फांट साइज भी बड़ा होना चाहिए।लेकिन दुखद स्थिति यह है
कि कोई प्रकाशक बाल कविताओं की किताबों पर चित्रांकन कराने के लिए पैसा खर्च नहीं
करना चाहते।
इधर मेरे पास कुछ बाल कविताओं की किताबें भी आई हैं ।इनमें से एक है
“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” ।इस बाल कविता संकलन की कवयित्री हैं पेशे से इंजिनियर
रोचिका अरुण शर्मा ।रोचिका की कहानियां तो मैंने बहुत पढ़ी हैं बच्चों की भी बड़ों
की भी ।लेकिन उनकी बाल कविताओं से परिचय इस संकलन के माध्यम से ही हुआ ।
“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” संकलन देखा कर ही लगता है कि इसमें कवयित्री,चित्रकार
और प्रकाशक तीनों ने ही मेहनत की है ।यही कारण है कि प्रोडक्शन की दृष्टि से यह एक
सुन्दर किताब के रूप में बाल पाठकों के लिए तैयार हुई है ।संभवतः इसीलिए मैं भी
पहले इस किताब की कविताओं के बारे में बात न करके पहले इसकी खूबसूरती की ही चर्चा
कर रहा ।
प्रोडक्शन की दृष्टि से इस किताब की सबसे बड़ी विशेषता है –हर कविता के
सामने बने हुए ब्लैक एंड व्हाईट या श्वेत श्याम रेखांकन या चित्र ।साथ ही कविताओं
की बड़ी फांट साइज ।ये चित्र किताब को आकर्षक तो बना ही रहे उससे बड़ी बात एक और है
कि ये चित्र बच्चों को भी कुछ क्रिएटिव करने का स्पेस दे रहे ।रोचिका जी से बात
होने पर उन्होंने इस ओर इंगित भी किया कि सभी चित्र इस हिसाब से बनाए गए हैं कि
बच्चे उनमें अपने हिसाब से मनचाहा रंग भी भर सकें ।साथ ही किताब के अंत में दो पेज
बच्चों के लिए छोड़ा भी गया है जिसमें वो भी चाहें तो ऐसी ही कोई कविता या कुछ और
लिख सकते हैं । इस तरह से देखा जाय तो बाल गीतों की यह किताब बच्चों के लिए एक
अच्छी एक्टिविटी बेस्ड किताब कही जा सकती है । यद्यपि इस बात का उल्लेख किताब में
कहीं नहीं किया गया है जबकि किताब के शुरू में या अंत में बच्चों के लिए इस तरह का
निर्देश दिया जा सकता था ।इसे मैं पुस्तक की कमी नहीं कहूँगा क्योंकि आगे इसका
रीप्रिंट होने पर बच्चों के लिए यह निर्देश किताब के शुरू में ही कहीं दी जा सकते
हैं ।
जहां तक कविताओं की बात है
तो इस बाल कविता संकलन में रोचिका अरुण शर्मा की कुल तीस कविताएं संकलित हैं ।रोचिका
की इन कविताओं में वह सब कुछ है जो बच्चों को पसंद आएगा ।इनकी कविताओं में बच्चों
का प्रिय खेल है,समाज है,परिवार
है,मानवीय रिश्ते हैं,प्रकृति है,जीव जंतु हैं,बाल मनोभाव हैं और भी बहुत कुछ ऐसा
जो बच्चों को आनंदित करेगा,गुनगुनाने को प्रेरित करेगा और कहीं कहीं उन्हें गुदगुदाएगा भी ।वैसे तो “चिड़ियाँ
पिकनिक करने आईं ”संकलन की सभी कविताएं बाल मनोभावों के अनुकूल हैं और उन्हें आनंद
भी देंगी ।लेकिन मैं यहां रोचिका अरुण शर्मा की कुछ कविताओं का उल्लेख करना
चाहूँगा ।
इस संकलन की पहली ही कविता है “मेरी मां” ।मां के लिए बच्चों की तरफ से यह
बेहतरीन अभिव्यक्ति है –रोचिका जी की इस अभिव्यक्ति की बानगी इन पंक्तियों में
देखी जा सकती है ---
गिरूँ तो धूल पोंछे वो,खड़ा
करती पकड़ बाहें
मुझे निस दिन निखारे वो,सुझाए
नित नई राहें।
आज बच्चे इस कदर स्कूली बस्ते के बोझ,कंप्यूटर,मोबाइल
में उलझते जा रहे हैं कि उनका बचपन खेलों की मौज मस्ती कहीं गुम होती जा रही है ।संकलन
की एक कविता “आँख मिचौली” ऐसे ही एक पारंपरिक खेल के बारे में बच्चों को बताने के
साथ ही कविता के माध्यम से इस पारंपरिक खेल को बचाने की भी कोशिश कही जा सकती है ।इसी
कविता की ये पंक्तियाँ देखिए –
आओ खेलें आँख मिचौली,बांधो
आंखों पर पट्टी
पास जो आए उसको छू लूँ भूलूं सब झगड़ा
कट्टी।
इसी तरह “दादा जी की ऐनक” संयुक्त परिवार ,रिश्तों और परिवार की गर्माहट,खुशियों
और सार्थकता को बताने वाली एक खूबसूरत कविता है ।बच्चों को स्कूल के दिनों के बीच
में मिलने वाली छुट्टियों से बहुत प्यार होता है ।स्कूलों में जब छुट्टियां होनी
होती हैं तो बच्चे पहले से ही उन छुट्टियों को बेहतरीन और मजेदार ढंग से बिताने की
योजना बनाने लगते हैं ।बच्चों की ऎसी ही योजनाओं की अभिव्यक्ति “छुट्टियाँ आई हैं”
कविता की इन पंक्तियों में देखी जा सकती हैं---
“नाना नानी बुला रहे हैं,अरे
छुट्टियाँ आई हैं
बड़ी बुआ मिलने को आईं खूब खिलौने लाई
हैं ।
दादी जी का मुखड़ा चमका,चाचा-चाची
भी आओ
दादा जी ने मूंछे तानीं पोते पोती
दिखलाओ ।”
इस कविता में बच्चों की छुट्टियां बिताने के
आनंद के साथ ही पूरे संयुक्त परिवार की महाता और खुशियों को भी रेखांकित किया गया
है ।
इसी ढंग की कुछ और उल्लेखनीय कविताएं इस संकलन
में हैं ।“अनुशासन रख लूंगा” कविता में बच्चा खुद अपने मां बाप से कह रहा की
मोबाइल के साथ वो समय का ताल मेल बना कर चलेगा और समय का सदुपयोग करेगा । “मेहनत
का फल” कविता के माध्यम से कवयित्री ने बच्चों को कृषि के प्रति जागरूक करने के
साथ ही श्रम के महत्त्व को भी बताया है ।“रबर-पेन्सिल” कविता में रबर पेन्सिल की
लड़ाई या कहें वर्चस्व की लड़ाई निश्चित ही बाल मन को भाएगी ।
संकलन की जिन दो अन्य महत्वपूर्ण कविताओं का उल्लेख करना जरूरी है और जिनके
बिना इस किताब की चर्चा अधूरी रह जाएगी ।वो कविताएं हैं—“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं”
और दूसरी कविता “किसने रीत बनाई” ।
“चिड़ियाँ पिकनिक करने आईं” में जहां बच्चों को प्रदूषण और पर्यावरण के बारे में
बताया गया है वहीं यह भी बताया गया है कि आज हमारे चारों और की हवा इतनी प्रदूषित
और गंदी हो रही कि आदमी क्या पशु-पक्षियों को भी पर्यावरण के इस प्रदूषण के गंभीर
परिणाम भुगतने पड़ रहे हैं ।कविता की शुरू की ही पंक्तियों में हम यह देख समझ सकते
हैं—
“सारी चिड़ियाँ गईं कहां पर नजर कहीं ना
आएं
रोज जगाती गीत सुना कर ना चहकें ना गाएं
।
बंटू ने खिड़की से झांका बाहर धुंआ-धुंआ
है
कोको भी तो खांस रहा है भौंके चुआं चुआं
है ।”
इसी तरह “किसने रीत बनाई” कविता में
पारंपरिक पहनावे को बताते हुए बच्चों के मन में उठने वाले प्रश्नों को भी जगह दी
गई है –
“मम्मी,दीदी,दादी क्यों ना मनमौजी सी होतीं
जो जी चाहे वही पहनतीं जबरन रीत न ढोतीं
।”
एक तरह से देखा जाय तो पहनावे के माध्यम
से इस कविता में बालक-बालिका में किए जा रहे भेद को भी उठाया गया है ।बच्चे के मन
में भी प्रश्न उठते हैं कि आखिर पहनावे के मामले में सारी छूट लड़कों या पुरुषों को
ही क्यों दी जा रही ? दीदी,दादी,मम्मी को क्यों नहीं ?वो अपनी मन पसंद कपड़े क्यूं नहीं पहन सकतीं ?
रोचिका अरुण शर्मा के इस संकलन की सभी
कविताएं बच्चों के लिए पठनीय तो हैं हीं और वो बच्चों को आनंदित,आह्लादित
करने के साथ ही उन्हें प्रकृति,जीव जंतुओं,मानव जीवन,पर्यावरण,मानवीय
रिश्तों ,पारंपरिक खेलों के प्रति निश्चित
ही संवेदनशील भी बनाएंगी ।साथ ही उन्हें किताब के खूबसूरत चित्रों को अपने मनचाहे
रंगों में रंगने का भी मौक़ा मिलेगा,अपने मन की कुछ कविताओं को किताब के अंतिम दो
पृष्ठों पर शब्दांकित करने का भी अवसर मिलेगा ।बशर्ते इस खूबसूरत किताब के अगले
रीप्रिंट में बच्चों के लिए ही एक छोटा सा निर्देश भी दिया जाय ।कवयित्री रोचिका
अरुण शर्मा जी के साथ ही चित्रकार दिलीप शर्मा जी और प्रकाशक को बहुत बधाई ।
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समीक्षक : डा0 हेमन्त कुमार
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