हादसा
गुरुवार, 7 नवंबर 2024
कहानी
हादसा
डा०हेमन्त कुमार
अभी कुहरे की चादर ने पूरे शहर को ढंक रखा था।सूरज की रोशनी धीरे धीरे कुहरे की इस चादर को बेधने की कोशिश कर रही थी।रात भर के हंगामे के बाद पूरा इलाहाबाद शहर नींद में करवटें ले रहा था।मोहल्ले के कुछ अत्यधिक जागरूक बूढ़े खुद को जवान समझते हुए डाक्टर की ठंढ में न टहलने की चेतावनी को धता बताते हुए मार्निंग वाक पर भी निकल पड़े थे।कुछ घोसी लोग अपनी गाय भैंसों को दुहने की तैयारी भी करते देखे जा सकते थे।जिन्हें वो इंजेक्शन लगाकर या मरे हुए बछड़े की खाल में भूंसा भर कर उन निरीह गायों भैंसों के थन में छुआ कर किसी तरह जबरन उनका दूध दुहेंगे।और दूध में आधा पानी भरकर और सफ़ेद पेस्टल कलर मिलाकर अपने बुद्धिमान ग्राहकों को भरमाएंगे।मुहल्ले की गलियों में इक्का दुक्का रिक्शे वाले अपने रिक्शों पर स्टेशन जाने वाली सवारियों के इंतज़ार में ऊंघ रहे थे।कुछ हाकर साइकिलों पर अख़बारों के गट्ठर लादे तेजी से अपनी मंजिलों की तरफ बढ़ रहे थे।यही वो वक्त था जब हादसे की खबर पूरे मोहल्ले के घरों को खड़बड़ा गई।मोहल्ले का हर आदमी लुंगी चादर जो भी मिला लपेट कर दौड़ पडा रेलवे लाइन की तरफ।
“भईया भईया.....उहां
लाइन के किनारे एक ठो औरत के लहास(लाश) पड़ी बा ..।”ममेरे भाई दीपू की तेज आवाज ने
मेरी रात की काकटेल पार्टी का नशा हिरन कर दिया था।कोई और वक्त होता तो शायद मैं
दीपू की इस जुर्रत के लिए उसे दो चार झापड़ जरुर रसीद कर देता।परन्तु लाश शब्द में
ही ऐसा सस्पेंस और आकर्षण था कि मैं तुरंत हड़बड़ा कर उठा बैठा।
“कहाँ है रे...कईसी लाश?”पूछते पूछते मैं अपनी बंसेहटी से
उछल कर अपना पाजामा लगभग पहन चुका था।हड़बड़ी में जल्दी से जो भी स्वेटर सामने दिखा
पहन कर मैं दीपू के साथ घर के बाहर आ गया।
वैसे तो रेलवे लाईन के किनारे किसी हादसे का होना अपने आप
में कोई अहमियत रखने वाली बात नहीं थी।क्योंकि रेलवे लाइन पर अक्सर ही किसी शंटिंग
करते इंजन से या मालगाड़ी से टकराकर कोई न कोई गाय भैंस कटती ही रहती थी।पर यह
मामला किसी गाय भैंस का नहीं बल्कि एक औरत का था और वो भी जवान औरत का।इसीलिए लाश
को देखने की उत्सुकता को मैं रोक नहीं सका था।दूसरे मेरे भीतर दबा हुआ किसी अच्छे
नामी गिरामी अखबार का नामचीन क्राइम रिपोर्टर बनने का सपना भी कहीं अन्दर से
कुलांचे मारकर बाहर निकल आया था।हालांकि कई सालों तक कई फ्लाप और अप्रकाशित क्राइम
स्टोरीज लिखने के बाद मैंने अपने उस सपने को अपने भीतर दफ़न कर दिया था और कोई
दूसरी नौकरी पाने का जुगाड़ करने लगा था।
मेरी ही तरह
मोहल्ले के और भी बहुत से लोग रेलवे लाइन की तरफ भागते दिखाई पड़े।हर व्यक्ति के
चेहरे पर उत्सुकता और भय के मिले जुले भाव थे।हर आदमी भयभीत इसलिए था कि मेरी
जानकारी के बाबत अभी तक हमारे मोहल्ले में ह्त्या या आत्मह्त्या जैसी कोई घटना
नहीं हुयी थी।
जब मैं वहां
पहुंचा तो रेलवे लाइन के किनारे काफी भीड़ इकट्ठी हो चुकी थी।लोगों ने लाश के चारों
ओर एक गोल घेरा सा बना लिया था।हर आदमी लाश को सबसे पहले और जल्दी से जल्दी देख
लेने के लिए उत्सुक था।इसीलिए सब एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुए से लग रहे थे।मैं भी
काफी धक्का मुक्की और परिश्रम के बाद लाश के नजदीक पहुँचने में कामयाब हो
गया।मैंने विजयी मुद्रा में सब की ओर देखा।मन ही मन मैंने अपनी इस सफलता के लिए
खुद को शाबाशी भी दी।और देता भी क्यों नहीं दो-ढाई सौ लोगों की भीड़ को चीर कर बीच
में पहुँच जाना कोई आसान काम है क्या?
भीड़ को चीर कर
घटनास्थल तक पहुंचते-पहुंचते मेरे अंदर का सुषुप्त पड़ा हुआ क्राइम रिपोर्टर फिर
जाग गया था।भीड़ के बीच में एक चौबीस-पचीस साल की युवती की लाश औंधी पड़ी थी।शरीर पर
एक टाप और जींस तुड़ी-मुड़ी अवस्था में दिख रहा था।ऐसा लग रहा था उसके कपड़े जबरन
उसके शरीर पर खींच तान कर पहनाये गए हैं।उसके शरीर पर पीछे से घावों के निशान तो
नहीं दिख रहे थे लेकिन जींस और टाप में कुछ खून के धब्बे साफ़-साफ़ दिख रहे थे।लाश की
स्थिति देखने से साफ़ पता लग रहा था कि युवती ट्रेन से तो नहीं ही कटी थी।बल्कि
उसकी ह्त्या कहीं और करके लाश यहाँ लाकर फेंकी गयी थी।या फिर उसे यहीं लाकर मारा
गया है।दोनों ही स्थितियों में उसके साथ बलात्कार होने की संभावना से इनकार नहीं
किया जा सकता था।शरीर औंधा पड़ा होने के कारण उसका चेहरा नहीं दिखाई पड़ रहा था।इसीलिए
उसकी पहचान भी नहीं हो पा रही थी।अभी तक मोहल्ले के किसी व्यक्ति ने उसे पहचाना
नहीं था इसीलिए पूरी तरह सस्पेंस बना था कि आखिर ये है कौन ? लेकिन पहनावे से वह
किसी भले घर की युवती लग रही थी।
युवती की लाश देखते ही मेरी आँखों के सामने तमाम
पत्रिकाओं और अख़बारों में पढ़ी हुई युवतियों की ह्त्या,आत्महत्या,बलात्कार के
अनेकों किस्से घूम उठे।मेरे भीतर का क्राइम रिपोर्टर तो जाग ही उठा था।उसने
अंदाजा लगाया कि “हो सकता है इस युवती की भी ह्त्या ही हुयी हो।या यह भी हो सकता
है कि पहले इसके साथ बलात्कार हुआ हो फिर उसे मार कर यहाँ ठिकाने लगाने की कोशिश
की गयी हो।”पर मेरे मन ने उस क्राइम रिपोर्टर को घुड़क दिया “अबे चूतिया हो का?कौनो
दूर दराज के इलाके में बलात्कार और मर्डर कईके लाश हिआं बस्ती में ठेकाने काहे
लगाई?ई मामला तो मोहल्ले के आसे पास का लग रहा है बुडबक राम।बड़े आये हो क्राइम
रिपोर्टर के बाप बने।आपन मुंह इहाँ न खोल्यो नाहीं तौ बेभाव के जूता पड़ी अबहिने।” लेकिन
मैं अपने मन में चलने वाले तर्क वितर्क और उठा पटक को जुबान पर नहीं लाया और लाश
देखने के बाद मैं भी भीड़ से बाहर आकर अपनी प्रिय चांसलर सिगरेट सुलगाने लगा।
धीरे-धीरे वहां
भीड़ बढ़ती ही जा रही थी।अफवाहों और कयासों का बाजार भी गर्म था।लेकिन लाश के नजदीक
जाने या उसे ठीक से पहचानने की कोशिश अभी तक किसी ने नहीं की थी।न ही किसी ने
नजदीकी पुलिस चौकी या थाने में फोन करने या सूचना देने की जरूरत महसूस की थी।सीधी
सी बात थी हर आदमी पुलिस की पूछताछ और रोज रोज थाने जाने के बवाल से बचना चाह रहा
था।
“लगता है इसे मारा किसी और जगह पर है और लाश यहाँ लाकर फेंक
गए है।”मोहल्ले के नेता जी कहे जाने वाले ठाकुर साहब बोले।
“अरे ठाकुर साहेब....तुमहूँ का बात करथौ ...एका कहूँ अउर नाहीं
हिअईन मारा गवा है ...देख नाहीं रहे हौ चारों और छीना-झपटी के निशान हैं.. ।”एक
सज्जन ने ठाकुर साहब का प्रतिवाद किया।ठाकुर साहब ने प्रतिवाद करने वाले व्यक्ति
को घूर कर देखा।गोया उसने उनकी बात काट कर बड़ा भारी जुर्म कर दिया हो।
“अब भैया चाहे एका इहाँ लाय के मारे होयं ----चाहे कतौ अंतै मारि के इहाँ लाइ के फेंक दिहे होयं ---एके
बेचारी के तौ मउत होई गई न।अब आप लोगन जाई के पुलीस थाना में रपटिया तौ लिखाय देत
जाव।हम लोगन के तौ थाने में जातौ डर लागथै।”पास ही खड़ी मोहल्ले की जमादारिन मृतक
युवती के प्रति सहानुभूति दिखाती हुयी बोली।
जमादारिन की बात
सुनते ही वहां पर खड़े सभी लोगों के ऊपर एक स्याह खामोशी सी छा गयी।थाने पुलिस की
बात सुनते ही सभी बगलें झांकने लगे।सब के चेहरों से ऐसा लग रहा था जैसे अभी उन्हें
ही पुलिस की जीप उठा ले जाएगी।जमादारिन की बात पर अमल करने के लिए कोई भी व्यक्ति
आगे नहीं आया।यहाँ तक कि मोहल्ले के नेता कहे जाने वाले ठाकुर साहब भी अपनी जेब से
पाउच निकाल कर अपनी रजनीगंधा और तुलसी की डोज बनाने में मशगूल हो गए।अभी भी वहां
लोगों के आने का दबाव बना ही हुआ था।लोग आ रहे थे और लाश का मौक़ा मुआयना करके अपना वक्तव्य देकर या
तो वापस लौट जा रहे थे या फिर किसी परिचित के साथ खड़े होकर चरमराती जा रही कानून
व्यवस्था पर गपियाना शुरू कर देते थे।
मैं भी वहां
खड़ा सोच ही रहा था कि इस मामले में मेरी क्या भूमिका होगी?मतलब मैं वहां रुकूँ या
चला जाऊं?एक तरफ मेरे अन्दर वर्षों से सुषुप्त पड़ा क्राइम रिपोर्टर का उत्साह
हिलोरें मार रहा था कि बस बेटा लगा दे अपनी सारी ऊर्जा इस केस को साल्व करके एक
बेहतरीन क्राइम स्टोरी तैयार करने में।और बन जा रातों रात क्राइम रिपोर्टर्स की
दुनिया का बेताज बादशाह।दूसरी ओर मेरी कई सालों की बेरोजगारी और निठल्लागिरी मुझे आगे बढ़ने से रोक
रही थी और बार-बार मेरे भीतर के क्राइम रिपोर्टर को समझा रही थी “कि अबे बुड़बक जब
इतने दिनों तक कोई स्टोरी करके कोई तमगा नहीं हासिल कर सका तो इस एक स्टोरी पर काम
करके क्या बाबा जी का घंटा हिलाएगा।जा चुपचाप किसी नौकरी का जुगाड़ कर।किसी तरह
कहीं बाबू ही बन जा।”और मैं अपने भीतर चल रहे इस युद्ध को नजर अंदाज करने के लिए
तेजी के साथ इधर-उधर चहल-कदमी करने लगा।मेरे भीतर का युद्ध बढ़ने के साथ ही मेरी
चहल-कदमी की गति भी बढ़ती जा रही थी।
मेरी ये चहल-कदमी कितनी देर और चलती रहती मुझे नहीं पता।लेकिन उसी समय वहां एक युवक की इंट्री ने मेरे भीतर चल रहे युद्ध और मेरी चहल-कदमी दोनों पर ब्रेक लगा दिया।वह युवक एकदम तेजी से वहां प्रकट हुआ।उसकी पैंट दो तीन जगह से फटी हुई थी।बाल बिखरे थे और दाढ़ी भी बेतरतीब ढंग से बढी थी।देखने से ही उसकी दिमागी हालत ठीक नहीं लग रही थी।वह भी भीड़ में घुसता हुआ उस युवती की लाश की तरफ झपटा......(क्रमशः)
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