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नागफ़नियों के बीच

गुरुवार, 28 अप्रैल 2011

कितनी नागफ़नियां
और उगाओगे
इस नन्हें से सीने में।

अभी तो यह बेचारा वैध शब्द
से परिचित भी नहीं हुआ था
और तुमने
इसे अवैध
घोषित कर दिया
जाति शब्द का
अर्थ जानने से पहले ही
इसे बद्जात घोषित कर दिया।

कान्वेण्ट और मदरसे की
संस्कृतियों के बीच
तुमने लटका दिया
इसे पेण्डुलमकी तरह।
राजानीति शब्द सुनने के
पूर्व ही
तुम इसे राजनीति के
शिकंजों में कस कर
करने लगे परीक्षण
कि किस खांचे में यह फ़िट बैठेगा।

गुब्बारे और कलम की जगह
तुमने पकड़ा दिया चाकू
इसके हाथों में
जिसने कि अभी
चाकू की धार भी
नहीं देखी थी।
अभी कितनी नागफ़नियां
और उगाओगे
इस नन्हें से सीने में।
00000
हेमन्त कुमार

20 टिप्पणियाँ:

Monu Awalla 28 अप्रैल 2011 को 11:37 am बजे  

practical poem.. nicely written Hemant.. :)

Irfanuddin 28 अप्रैल 2011 को 5:57 pm बजे  

Bitter truth of life....

Hemant ji bahut achi rrachna hai.

Regards,
irfan.

डॉ. मोनिका शर्मा 28 अप्रैल 2011 को 6:01 pm बजे  

मर्मस्पर्शी ....प्रभावित करती रचना

प्रवीण पाण्डेय 28 अप्रैल 2011 को 9:31 pm बजे  

उपाधियों के दलदल में जूझता जीवन। बहुत सुन्दर रचना।

संध्या आर्य 28 अप्रैल 2011 को 10:16 pm बजे  

AISE BACHCHO KO JAB MAI SADAK PAR BHATAKATE HUYE AUR UNAKI ANAKHO ME EK AJIB SI UDASI KO JAB DEKH LETI HU TO KALEJA MUH KO AA JATA HAI ....MARMSPARSHI

pragya 28 अप्रैल 2011 को 10:18 pm बजे  

सही बात है, अभी तो बेचारे ने कितने शब्दों के अर्थ भी नहीं जाने थे कि इसे उनका हथियार बना डाला हमने..कितनी नागफनियाँ उगाएँगे हम...

Maheshwari kaneri 30 अप्रैल 2011 को 9:05 am बजे  

दिल को छूने वाली अभिव्यक्ति है । आप के सभी ब्लांग पढ़े बहुत सुन्दर है। मेरे ब्लांग में भी आप आये तो मुझे खुशी होगी धन्यवाद…

वाणी गीत 3 मई 2011 को 1:50 am बजे  

मासूमों के सीने में जहर भरते देख तल्खी जुबान और लेखनी में भी आ ही जाती है ...
आखिर कब तक ...
सार्थक प्रश्न , हर जिम्मेदार नागरिक को करना चाहिए !

vandana gupta 3 मई 2011 को 4:12 am बजे  

आह! सच को बहुत ही सही तरीके से प्रस्तुत किया है…………मर्मस्पर्शी शानदार रचना।

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 3 मई 2011 को 5:38 am बजे  

गहन भावों की सशक्त अभिव्यक्ति

Markand Dave 3 मई 2011 को 5:57 am बजे  

आदरणीय श्रीहेमंतकुमारजी,

जिसने कि अभी
चाकू की धार भी
नहीं देखी थी।

बहुत सुंदर,बहुत बधाई।

॥ उष्णो दहति चाङ्गारः शीतः कृषायते करम् ॥

कोयला गर्म होता है तो जलाता है और ठंडा होने पर श्याम हो जाता है..!!

मार्कण्ड दवे।

http://mktvfilms.blogspot.com

Kailash Sharma 3 मई 2011 को 7:40 am बजे  

अभी कितनी नागफ़नियां
और उगाओगे
इस नन्हें से सीने में।...

बहुत मार्मिक रचना...बहुत प्रभावी प्रस्तुतीकरण..बहुत सुन्दर

ZEAL 3 मई 2011 को 8:53 am बजे  

कान्वेण्ट और मदरसे की
संस्कृतियों के बीच
तुमने लटका दिया
इसे ‘पेण्डुलम’की तरह।...

Bitter truth !

Very touching lines .

.

रजनीश तिवारी 3 मई 2011 को 9:27 am बजे  

कितनी नागफ़नियां
और उगाओगे
इस नन्हें से सीने में।
बहुत भावपूर्ण रचना ...

Coral 4 मई 2011 को 9:53 pm बजे  

मार्मिक

http://rimjhim2010.blogspot.com/

हिन्‍दी ब्‍लॉगर 6 मई 2011 को 9:40 pm बजे  

नागफनियों के बीच
या
नाग‍फनियों के बीज ?

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. ‘देख लूं तो चलूं’ "आदिज्ञान" का जुलाई-सितम्बर “देश भीतर देश”--के बहाने नार्थ ईस्ट की पड़ताल “बखेड़ापुर” के बहाने “बालवाणी” का बाल नाटक विशेषांक। “मेरे आंगन में आओ” ११मर्च २०१९ ११मार्च 1mai 2011 2019 अंक 48 घण्टों का सफ़र----- अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस अण्डमान का लड़का अनुरोध अनुवाद अभिनव पाण्डेय अभिभावक अम्मा अरुणpriya अर्पणा पाण्डेय। अशोक वाटिका प्रसंग अस्तित्व आज के संदर्भ में कल आतंक। आतंकवाद आत्मकथा आनन्द नगर” आने वाली किताब आबिद सुरती आभासी दुनिया आश्वासन इंतजार इण्टरनेट ईमान उत्तराधिकारी उनकी दुनिया उन्मेष उपन्यास उपन्यास। उम्मीद के रंग उलझन ऊँचाई ॠतु गुप्ता। एक टिपण्णी एक ठहरा दिन एक तमाशा ऐसा भी एक बच्चे की चिट्ठी सभी प्रत्याशियों के नाम एक भूख -- तीन प्रतिक्रियायें एक महत्वपूर्ण समीक्षा एक महान व्यक्तित्व। एक संवाद अपनी अम्मा से एल0ए0शेरमन एहसास ओ मां ओडिया कविता ओड़िया कविता औरत औरत की बोली कंचन पाठक। कटघरे के भीतर कटघरे के भीतर्। कठपुतलियाँ कथा साहित्य कथावाचन कर्मभूमि कला समीक्षा कविता कविता। कविताएँ कवितायेँ कहां खो गया बचपन कहां पर बिखरे सपने--।बाल श्रमिक कहानी कहानी कहना कहानी कहना भाग -५ कहानी सुनाना कहानी। काफिला नाट्य संस्थान काल चक्र काव्य काव्य संग्रह किताबें किताबों में चित्रांकन किशोर किशोर शिक्षक किश्प्र किस्सागोई कीमत कुछ अलग करने की चाहत कुछ लघु कविताएं कुपोषण कैंसर-दर-कैंसर कैमरे. कैसे कैसे बढ़ता बच्चा कौशल पाण्डेय कौशल पाण्डेय. कौशल पाण्डेय। क्षणिकाएं क्षणिकाएँ खतरा खेत आज उदास है खोजें और जानें गजल ग़ज़ल गर्मी गाँव गीत गीतांजलि गिरवाल गीतांजलि गिरवाल की कविताएं गीताश्री गुलमोहर गौरैया गौरैया दिवस घर में बनाएं माहौल कुछ पढ़ने और पढ़ाने का घोसले की ओर चिक्कामुनियप्पा चिडिया चिड़िया चित्रकार चुनाव चुनाव और बच्चे। चौपाल छिपकली छोटे बच्चे ---जिम्मेदारियां बड़ी बड़ी जज्बा जज्बा। जन्मदिन जन्मदिवस जयश्री राय। जयश्री रॉय। जागो लड़कियों जाडा जात। जाने क्यों ? 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