पिन होल कैमरे से डिजिटल कैमरों तक की अनोखी यात्रा
बुधवार, 19 अगस्त 2020
(विश्व फोटोग्राफी दिवस पर विशेष)
पिन होल कैमरे से डिजिटल
कैमरों तक की अनोखी यात्रा
डा0हेमन्त कुमार
आप जब भी कहीं अकेले,परिवार या मित्रों के साथ घूमने जाते हैं तमाम सुन्दर प्राकृतिक दृश्य देखते हैं।खूबसूरत पार्क,पक्षी,जीव-जंतु,ऐतिहासिक स्थल देखते हैं और उसकी सुन्दरता को फ़ौरन अपने मोबाइल या डिजिटल कैमरे में स्मृति के तौर पर सुरक्षित कर लेते हैं।कभी किसी शादी विवाह,सामाजिक समारोह में गए और वहां परिवार के कोई सदस्य वर्षों बाद मिले झट से अपना मोबाइल फोन निकाला और उनके साथ एक सेल्फी ले ली।मतलब आज कितना आसान हो गया है फोटो खींचना,खिंचवाना,उसे फ़ौरन देखना और अपनी डिवाइस(मोबाइल या कंप्यूटर) में उसे सुरक्षित कर लेना।ये सब आज के डिजिटल कैमरों, मोबाइल्स और डिजिटल तकनीक का ही तो कमाल है।
लेकिन अगर हम आप आज से लगभग ढाई से तीन दशक पहले के समय पर निगाह डालें यानि लगभग 1990 के आस-पास।तो क्या उस समय भी फोटो खींचना इतना आसान था जितना आज है?इसका सीधा सा उत्तर है नहीं।क्योंकि उस समय फोटोग्राफी एक बहुत महँगा शौक था।फिल्म वाले कैमरे इस्तेमाल होते थे जिनमें फिल्म लगती थी।कैमरे भी हर किसी के पास नहीं थे।जिन लोगों के पास कैमरे थे भी तो वो उसमें फिल्म डलवाने,फिल्म लैब से डेवलप प्रिंट करवाने के खर्चों से बचने के लिए जल्दी कैमरों का इस्तेमाल नहीं करते थे।एक बात और भी थी कि अगर कोई व्यक्ति आज कैमरे से फोटो खींचता था या फिर स्टूडियो में खिंचवाता था तो उसे फोटो देखने का मौक़ा कम से कम एक सप्ताह बाद ही मिल पाता था।इन एक हफ़्तों में उसके सामने बड़ी असमंजस वाली या कह सकते हैं सस्पेंस की स्थितियां रहती थीं कि पता नहीं फोटो कैसी आई होगी।कहीं खराब बनी होगी तो पैसे बेकार जायेंगे वगैरह वगैरह।जबकि आज आप मोबाइल कैमरे से फोटो खींचते हैं और तुरंत देख भी लेते हैं।उसे किसी के पास भेजना हो तो भेज भी देते हैं या किसी सोशल साईट पर अपलोड भी कर देते हैं।प्रिंट करवाना हो तो किसी फोटो कलर लैब में अपने मोबाइल के मेमोरी कार्ड से फोटो लैब के कंप्यूटर में ट्रांसफर करवा कर प्रिंट करवा लेते हैं।पर क्या कभी आपने इस बात पर भी विचार किया है कि इन डिजिटल,मोबाइल या फिल्म वाले कैमरों का आकार प्रकार पहले कैसा था ? या पहली बार कैसे और किस कैमरे से फोटो खींची गयी थी ? चलिए हम आपको ले चलते हैं इन कैमरों के दादाओं पर दादाओं के पास और फोटोग्राफी के उन खोजकर्ताओं के पास जिनकी बदौलत हम आप आज इतनी आसानी से सुन्दर खूबसूरत तस्वीरें खींचते हैं।
सबसे पहले 965 से
1040 ई० के बीच अल्हाजेन ने लोगों को किसी दीवाल पर एक पिनहोल कैमरे के माध्यम से
एक तस्वीर बना कर दिखाई।यह पहला कैमरा था जिसे कैमरा आब्स्क्युरा नाम दिया गया था।इसमें
एक पिन के बराबर के छेद से रोशनी दीवाल या किसी दूसरी सतह पर आकर एक तस्वीर बनाती
थी जो कि तुरंत हट भी जाती थी।फिर लोगों के ये कहने पर कि ऐसा कोई उपाय हो जिससे ये तस्वीर वहां बनी रहे।1727 ई०में जर्मनी के एक
रसायनशास्त्री जान शुल्ज ने ये खोज की कि अगर चाक,नाइट्रिक एसिड और चांदी को
मिलाकर उस जगह पर लगा दें तो सूरज की रोशनी पड़ने से वहां बनी तस्वीर बाद में भी
बनी रहेगी।इस घटना के लगभग 50 सालों बाद 1777 में स्वीडिश रसायनशास्त्री कार्ल शील
ने उस रसायन में कुछ बदलाव कर उसमें अमोनिया मिलाकर उस तस्वीर को दीवाल या सतह पर
स्थाई रूप से बनाने में सफलता हासिल की।
इसके बाद कई
देशों में कई वज्ञानिक इस दिशा में लगातार काम करते रहे।और आखिरकार फ्रांस के दो
वैज्ञानिकों जोसेफ नाईसफोर और लुईस डॉगेर ने फोटोग्राफी की प्रक्रिया डोगोरोटाइप
का आविष्कार करके 1826 में पहली फोटो खिंची।इसके लिए उन लोगों ने आब्स्क्युरा
कैमरे का ही इस्तेमाल किया जिसमें उन्होंने चांदी और अन्य रसायन लगी एक बड़ी प्लेट
लगाईं जिस पर फोटो बनी थी।लेकिन इस पहली फोटो को खींचने में उन्हें लगभग 8 घंटों
का समय लगा था।और इस पहली फोटो में उन लोगों ने अपने कमरे की खिड़की के बाहर का
दृश्य खींचा था।लेकिन फोटोग्राफी की इस प्रक्रिया में काफी समय लगता था।लोगों को
फोटो देखने के लिए कई कई दिन इंतज़ार करना होता था।इसलिए इस लम्बे समय को कम करने
की दिशा में भी दोनों वैज्ञानिकों ने काफी प्रयास किया।और 1832 में कुछ रसायनों के
और इस्तेमाल के बाद उन्होंने एक दिन में फोटो तैयार करने में सफलता पाई।इस
आविष्कार की घोषणा 19अगस्त1839 को फ्रांस सरकार ने आधिकारिक तौर पर की थी।इसीलिए19अगस्त
को विश्व फोटोग्राफी दिवस पूरी दुनिया भर में मनाया जाता है।
फोटोग्राफी को और
बेहतर बनाने की दिशा में अब दुनिया भर के वैज्ञानिकों ने काम करना शुरू कर दिया था।फोटो
खींचने के लिए इस्तेमाल किये जाने वाले कैमरों के बड़े आकार और उसमें लगने वाली
प्लेट्स के कारण अभी फोटोग्राफी सिर्फ बड़े,धनवान और अमीर लोगों के लिए ही संभव थी।इसी
लिए दुनिया के वैज्ञानिक इस प्रक्रिया को सरल बनाने और कैमरे का आकार छोटा करने की
दिशा में काम कर रहे थे।
इस बीच फोटोग्राफी की दिशा में स्काटलैंड के भौतिक शास्त्री क्लार्क मैक्सवेल
ने एक और सफलता हासिल कर ली।वो काफी लम्बे समय से रंगीन फोटो बनाने की दिशा में काम कर
रहे थे।और अंततः उन्होंने सन 1861 में दुनिया की पहली रंगीन तस्वीर बनाने में
सफलता हासिल की।यह तस्वीर एक फीते की थी जिसमें लाल,नीला और पीला रंग था।
ये वो समय था जब
दुनिया के हर कोने में फोटोग्राफी कला को और बेहतर बनाने के लिए नयी खोजें और
प्रयोग हो रहे थे।एक तरफ वैज्ञानिक स्टिल फोटो को आम जन तक पहुंचाने की कोशिश कर
रहे थे तो वहीँ कुछ वैज्ञानिक इन तस्वीरों को चलती फिरती आकृतियों या कहें फिल्म
के रूप में प्रस्तुत करने के लिए काम कर रहे थे।इसकी शुरुआत एक स्टिल फोटोग्राफर
एडवर्ड मुएब्रिज ने सन1872 में की थी।उन्हें दुनिया की पहली चलती फिरती तस्वीरों
को खींचने में 6 साल का समय लगा था।उन्होंने घोड़ों के दौड़ने को कैमरे में कैद करने
के लिए रेस ट्रैक पर 12 वायर कैमरे लगाये थे।आखिर एडवर्ड की मेहनत भी रंग लाई और
वो 6 साल की मेहनत के बाद जमीन को छुए बगैर दौड़ते घोड़ों की तस्वीरें कैमरे में कैद
करने में सफल रहे।इसे ही पहली मोशन पिक्चर भी कहा गया है।
1870 के दशक
में ही फोटोग्राफी की दिशा में एक और महत्वपूर्ण काम हुआ।यह काम किया रिचर्ड
मैडाक्स ने।इन्होने पहली बार फोटोग्राफ को सुरक्षित रखने के लिए सूखी जिलेटिन की
प्लेट्स का इस्तेमाल किया।इस प्लेट को अधिक समय तक सुरक्षित भी रखा जा सकता था।
अभी तक फोटोग्राफी का शौक सिर्फ धनी और पेशेवरों
के लिए ही था।लेकिन सन 1880 में जार्ज ईस्टमैन ने अमेरिका में कोडक नाम से एक
कम्पनी बनाई।ईस्टमैन ने कैमरों में लगाने के लिए एक लचीली रोल फिल्म भी बनाई जिसे
कैमरों में लगाना भी आसान था।इसी के बाद उन्हें कैमरा बनाने की भी अनुमति सरकारी
तौर पर दी गयी।कोडक कंपनी ने इस दौरान लकड़ी का एक बाक्स कैमरा भी बनाया।जिसमें
लगभग 100 तस्वीरें खींचने के लिए फिल्म लगी होती थी।ये कैमरा भी थोड़ा बड़ा था और
इसमें सभी फोटो खींचने के बाद ग्राहक तस्वीरें बनाने के लिए पूरे कैमरे को ही कोडक
कम्पनी में भेजता था।और उसे आगे फोटो खींचने के लिए लकड़ी का ही एक 100 फोटो खींचने
वाला कैमरा दिया जाता था।फिर कुछ समय बाद पिछले कैमरे की तस्वीरें उसके पास आती
थीं।
धीरे-धीरे कोडक कम्पनी ने भी अपने इस कैमरे में बदलाव किया और प्रसिद्ध कैमरा निर्माता फ्रैंक ब्राउनवेल से कह कर दुनिया का सबसे पहला छोटा कैमरा “कोडक ब्राऊनी” बनवाया जिससे एक छोटा बच्चा भी फोटो खींच सकता था।इसके बाद कोडक कंपनी लगातार अपने कैमरों को बेहतर बनाने की दिशा में और फिल्म को सुधारने की दिशा में काम करती रही।1930में कोडक ने अपनी पचासवीं वर्षगाँठ के अवसर पर कोडक कैमरों के कई माडल बनाए।इतना ही नहीं “कोडक ब्राउनी” माडल के लगभग 5 लाख कैमरे बना कर एक फिल्म के साथ उस साल12 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले सभी बच्चों को मुफ्त बांटा।एक तरह से देखा जाय तो कोडक कम्पनी फोटोग्राफी के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुयी।लेकिन अभी इन कैमरों में 6,8 या12 तस्वीरें लेने वाली वन ट्वेंटी साइज की बड़ी फिल्मों की रील लगती थी।
1905 से1913 के
बीच का भी समय फोटोग्राफी की दिशा में महत्वपूर्ण है।इस बीच बहुत सी कम्पनियां
35एम0एम0की छोटी फ़िल्में भी कैमरों के लिए बनाना शुरू कर चुकी थीं।और आस्कर बारनैक
ने 1913 में 35एम0एम0 फिल्म वाला पहला कैमरा लाइका बनाया।पर विश्व युद्ध के कारण
उन्हें अपना काम रोक देना पडा।और फिर 1925 में उन्होंने लिट्ज कैमरा कंपनी की और
से लाइका कैमरा बाजार में उतारा।इसके बाद धीरे धीरे 35एम0एम0 फिल्म वाले कैमरों की
ओर लोगों का आकर्षण बढ़ा और लोगों ने इनका इस्तेमाल शुरू किया।1936 में जापान की
कंपनी “कैनन” ने अपना पहला रेंज फाइंडर कैमरा शुरू किया।
फिर तो धीरे
धीरे कैमरा बनाने वाली कंपनियों को पंख लग गए।रेंज फाइंडर कैमरों के बाद पहले
टी0एल०आर० फिर एस0 एल0 आर०कैमरे बाजार में आने लगे।1936 से लगभग 1990 तक का लगभग
50 वर्षों का समय पूरी दुनिया में फोटोग्राफी कैमरों और फिल्मों की विकास का रहा
है।इस दौरान रोलीफ्लेक्स,याशिका,निकान,कैनन,पेंटेक्स,मिनोल्टा जैसी कई बड़ी
कंपनियों ने अपने कैमरों के बेहतरीन माडल्स बनाए।कैमरों के लिए ब्लैक एंड
व्हाईट,कलर,गेवाकलर,अँधेरे में भी फोटो खींचने वाली फ़िल्में भी बनीं और पूरी
दुनिया में फोटोग्राफी का बहुआयामी विकास होता गया।लेकिन सबसे बेहतरीन कैमरे बनाने
के क्षेत्र में जापान सबसे आगे रहा।
कैमरों के इतिहास में अगर पोलोराइड कैमरे
की चर्चा न हो तो बात अधूरी लगेगी।पोलोराइड वो कैमरा होता था जिसमें फिल्म की जगह
केमिकल लगा फोटोग्राफी पेपर लगता था।और उसमें फोटो खींच कर 10 सेकेण्ड में ही
कैमरे से बाहर आ जाती थी।हालांकिइस कैमरे की खोज एडविन ह्यूबर्ट लैंड ने 1947 में
ही कर ली थी।पर वो कैमरा काफी वजनी था।इसके काफी बाद 1970 के आस-पास पहला हल्का
पोलोराइड कैमरा बाजार में आया।इसका इस्तेमाल अक्सर स्टूडियो वाले ग्राहक को तुरंत
फोटो देने के लिए करते थे या फिर शौकिया लोग इसका इस्तेमाल करते थे।2008 में कंपनी
के बंद होने तक इन कैमरों का इस्तेमाल होता रहा।
फिल्म कैमरों
के बाद फोटोग्राफी की दिशा में सबसे बड़ी छलांग डिजिटल युग में लगी।यद्यपि 1980 से
1990 के दशक में डिजिटल कैमरों को बनाने की दिशा में काफी काम हो रहा था।लेकिन
पहला सफल डिजिटल कैमरा कोडक कंपनी ने 1991 में बनाया।बाद में दुनिया की बड़ी-बड़ी
नामी गिरामी कंपनियों कैनन,निकान,पेंटेक्स,सोनी,मिनोल्टा आदि ने भी डिजिटल कैमरे बनाने की दिशा में काम शुरू
कर दिया।फिल्म कैमरों की ही तरह इन कैमरों में भी पहले रेंज फाइंडर कैमरे बाजार
में आये फिर धीरे-धीरे डी0एस०एल०आर० का ज़माना आ गया।डिजिटल कैमरों की शुरुआत ने हर
आम आदमी को भी फोटोग्राफर बना दिया।क्योंकि जो लोग कैमरे नहीं खरीद सकते उनके लिए
मोबाइल कंपनियों ने मोबाइल में एक से एक गुणवत्ता और इफेक्ट्स वाले कैमरे लगाने शुरू कर दिए हैं।
पहले जहां कैमरों में फिल्म लगती थी वहीं
अब इन डिजिटल कैमरों में मेमोरी कार्ड लगने लगे।और इन कैमरों की फोटो की गुणवत्ता
उनके पिक्सेल से आंकी जाती है।आज स्थिति यह है हर आम आदमी भी मोबाइल से फोटो
खींचता नजर आ जाता है।आज हर आदमी के पास डिजिटल कैमरा भले ही न हो लेकिन एक अदद
मोबाइल तो है ही।जिसमें डिजिटल कैमरा लगा हुआ है।अब ये बात अलग है की कौन कैसी
फोटो खींचता है पर फोटो खींचता तो है।
इस तरह
फोटोग्राफी की दुनिया लगभग दो सौ सालों की यात्रा पूरी कर उस मुकाम पर पहुँच चुकी
है जहां आज हर व्यक्ति को हर कदम पर फोटो की जरूरत है।चाहे वो परिचय-पत्र हो,वोटर
आई0 डी0कार्ड,आधार कार्ड,राशन कार्ड,बैंक एकाउंट पासबुक,ड्राइविंग लाइसेंस, पासपोर्ट,या
अन्य कोई व्यक्तिगत कागजात।बिना फोटो के सब कुछ अधूरा है।
ये तो हुयी लोगों के व्यक्तिगत जीवन में
फोटो की उपयोगिता।आइये ज़रा देखें इस फोटोग्राफी का हमारे जीवन में और कहाँ कहाँ
इस्तेमाल हो रहा ?अगर देश की बात करें तो हर वैज्ञानिक,औद्योगिक आविष्कारों
में,अंतरिक्ष और वैज्ञानिक खोजों में,हमारे स्वास्थ्य का ध्यान रखने के लिए होने
वाले एक्स-रे,सी०टी0स्कैन,एम०आर०आई०में,हमारी सुरक्षा के लिए लगे सैनिकों के लिए
नाईट विजन कैमरे.,टी0,वी०,पत्र-पत्रिकाओं और शिक्षा के क्षेत्र में ----कहाँ नहीं
है फोटोग्राफी का उपयोग।
एक बात और है कि
ये कैमरा या मोबाइल कैमरा तो केवल एक फोटो खींचने की मशीन मात्र है।असली फोटो तो
खींचता है दुनिया का सबसे बड़ा कंप्यूटर यानि आपका दिमाग। आपकी कल्पना शक्ति।किसी वस्तु
या दृश्य को आप किस एंगिल से देखते हैं,किस लाईट में फोटो खींचते हैं,अपनी फोटो
में किस वास्तु को शामिल करते या छोड़ते हैं ---इन सब बातों पर निर्भर करेगी आपकी
या किसी छायाकार की फोटो की गुणवत्ता।आप भी चाहें तो एक कुशल फोटोग्राफर बन सकते
हैं।बस जरूरत है आपके अन्दर कल्पनाशीलता,चीजों,दृश्यों को देखने की अपनी सोच,और
फोटोग्राफी के प्रति समर्पण और जज्बा---ये सभी चीजें मिलकर आपको एक बेहतरीन
छायाकार बना सकती हैं।तो सोच क्या रहे हैं--–उठाइये अपना मोबाइल कैमरा और शुरू हो
जाइए दुनिया की खूबसूरती को अपने नजरिये से देखने के लिए।
०००००
लेखक:डा0हेमन्त कुमार
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