तकनीकी के विकास में अपराधी बनते बच्चे------।
शुक्रवार, 3 अक्तूबर 2014
(फ़ोटो-गूगल से साभार) |
पिछली 8 मई 2014 को
हिन्दुस्तान दैनिक अखबार में प्रकाशित आगरा शहर की एक खबर ने तो बड़े बड़ों के होश
उड़ा दिये थे।बहुतों ने उस खबर को पढ़ा भी होगा।फ़िर भी संदर्भ के तौर पर यहां मैं उस
घटना का उल्लेख करना जरूरी समझता हूं।
घटना आगरा के ताजगंज क्षेत्र में
श्याम लाल मार्ग के पास की एक छोटी सी बस्ती की है।बस्ती की एक सड़क पर पांच बच्चे
कंचे खेल रहे थे।कोई कक्षा एक छत्र तो कोई कक्षा तीन का।पड़ोस की एक बच्ची ने उनके
पास आ कर छत पर आए बंदरों को भगाने के लिये कहा।क्योंकि उसके मां बाप मजदूरी करने
गये थे और वह बंदरों से डर रही थी।पांचों उसकी छत पर गये और बंदरों को भगा
दिया।इसके बाद उन्होंने जो किया वो हतप्रभ करने वाला था। पांचों लड़कों ने मिलकर उस
लड़की को दबोच लिया और उसके कपड़े फ़ाड़ने लगे।बच्ची के चीखने पर पड़ोसियों ने आकर उस
बच्ची को लड़कों के चंगुल से मुक्त कराया।
पुलिस चौकी पर जब पुलिस वालों ने
उन बच्चों से पूछा कि,“उन्हें मालूम है कि वो सभी गैंगरेप की कोशिश कर रहे थे?”तो उन लड़कों का जवाब सुन कर
पुलिस वालों के होश फ़ाख्ता हो गये।उन्होंने कहा कि वो क्या कर रहे थे ये उन्हें
नहीं मालूम लेकिन उनके पड़ोस में रहने वाले कुछ बड़ी उमर के लड़के उन्हें मोबाइल पर
फ़िल्में दिखाते हैं। और उन फ़िल्मों में ऐसा करते दिखाया गया था।वही फ़िल्में देख कर
उन बच्चों के मन में वैसा ही करने की बात आई।
यह खबर सिर्फ़ पुलिस वालों को ही
नहीं बल्कि हमें,आपको सभी को स्तब्ध करने वाली है।साथ ही आज के हाईटेक होते जा रहे
पूरे समाज को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करने वाली है।
आज जब कि हर हाथ में मोबाइल है।घर
घर में इण्टरनेट की सुविधा उपलब्ध है। हम घर स्कूल से लेकर दफ़्तर और बाजार तक हर
जगह हाईटेक होते जा रहे हैं।इन नयी बदलती परिस्थितियों के साथ चलने के लिये क्या
हम अपने बच्चों को तैयार करने और सही दिशा निर्देश देने का भी काम कर रहे हैं।वाणिज्य
एवं उद्योग मंडल एसोचैम के एक ताजा सर्वेक्षण से जानकारी मिली है कि हमारे देश के
महानगरों और छोटे शहरों तक के 8 से 13 साल उम्र वाले लगभग 73 प्रतिशत बच्चे आज
फ़ेसबुक,व्हाट्स ऐप जैसे सोशल नेटवर्क साइट्स पर मौजूद हैं।
यदि इन आंकड़ों को पूरी तरह सही
माना जाय तो हमारे लिये चिन्ता की बात यह है कि बच्चे इतनी कम उम्र में इन सोशल
साइट्स पर क्या कर रहे हैं?जाहिर सी बात है कि वो इन साइट्स का उपयोग अपनी शैक्षिक
दक्षता या कोई हुनर बढ़ाने के लिये तो नहीं कर रहे होंगे। अगर वो इस दिशा में कोई
प्रयास कर रहे होते तो यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि होती हमारी प्राथमिक शिक्षा
व्यवस्था की।लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि ये बच्चे वहां मौजूद हैं तो सिर्फ़ नये
दोस्त बनाने,रोज अपनी फ़ोटो अपलोड करने,अपने दोस्तों की फ़ोटो देखने या फ़िर चैटिंग
करने के लिये।
प्रश्न यह भी है कि पढ़ने लिखने की
उम्र में अविकसित बौद्धिक स्तर वाले इन बच्चों का अपने कीमती समय का ज्यादा हिस्सा
इन सोशल साइट्स पर बिताना क्या देश,समाज या उनके परिवार और खुद उनके हित में है?क्या वे इन सोशल साइट्स
पर जाकर उन पर अपलोड किये गये तमाम पोर्न वीडियोज,पोर्न फ़ोटोग्रैफ़्स से बचे रह
सकेंगे?क्या उनके अभिभावकों और अध्यापकों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती कि उनके हाथ
में मोबाइल देते समय या उनकी मांग पर घर में इन्टरनेट लगवाते समय अपने बच्चों पर
इस बात का प्रतिबंध लगा सकें कि अभी तुम्हारी उमर पढ़ने लिखने,खेलने कूदने की और
अपनी स्किल्स को बढ़ाने की है।सोशल नेटवर्क पर सबय बिताने,सर्फ़िंग या चैटिंग करने
की नहीं।
अगर किसी अभिभावक ने अपने बच्चे को
सोशल नेटवर्क पर जाने की अनुमति दी है तो भी उसे चाहिये कि वह बीच बीच में उसकी
फ़्रेण्ड लिस्ट चेक करें।कभी उसकी वाल पोस्ट चेक करें।इससे उस बच्चे को वह बहुत
सारे ऐसे खतरों से बचा सकते हैं जिनका शिकार हो जाने पर बच्चे का सारा विकास बाधित
हो सकता है।
अभी भी वक्त ज्यादा नहीं हुआ
है।यदि समाज,देश के साथ ही हमें इन बच्चों का भविष्य बचाना है तो अभिभावकों,अध्यापकों
को अपने बच्चों छात्रों को इस दिशा में जागरूक करना होगा।उन्हें समझाना होगा।
जिससे भविष्य में किसी अन्य शहर,कस्बे में आगरा में घटित हुयी घटना की पुनरावृत्ति
न हो सके।
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डा0हेमन्त कुमार
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