हाशिये पर हिन्दी का बाल साहित्य
गुरुवार, 19 अगस्त 2010
इधर मुझे लगातार हिन्दी साहित्य से सम्बन्धित कई सेमिनारों,गोष्ठियों और सम्मान समारोहों में जाने का अवसर मिला है।इन गोष्ठियों,सेमिनारों में खूब गरमागरम बहसें हुयीं,साहित्यिक चर्चायें हुयीं।हिन्दी साहित्य पर मंडरा रहे इन्टरनेट और इलेक्ट्रानिक मीडिया के खतरों की बातें भी की गयीं----लेकिन ये चर्चायें काफ़ी आधी अधूरी सी लगीं—इनमें कुछ कमी खटक सी रही थी। और वह कमी थी हिन्दी के बाल साहित्य की चर्चा।
आज जब कि प्रचुर मात्रा में बाल साहित्य लिखा जा रहा है,प्रकाशित भी हो रहा है। ऐसे में किसी भी सेमिनार,संगोष्ठी साहित्यिक समारोह में बाल साहित्य की चर्चा न होना इस बात का द्योतक है कि आज भी हिन्दी साहित्य के मठाधीश बाल साहित्य को साहित्य की श्रेणी में नहीं रखते। इतना ही नहीं आप हिन्दी साहित्य के इतिहास और आलोचनाओं से सम्बन्धित पुस्तकें उठा कर देखिये उसमें भी कहीं बाल साहित्य की चर्चा नहीं मिलेगी,या मिलेगी भी तो बहुत नाम मात्र की।
जब कि वास्तविकता यह है कि खड़ी बोली हिन्दी के आरंभिक काल से ही बाल साहित्य लिखा जा रहा है।सभी बड़े साहित्यकारों ने भी थोड़ा बहुत तो बाल साहित्य लिखा ही है।चाहे वह बच्चों को उपदेश देने के लिये लिखा हो अथवा मनोरंजन के लिये। महादेवी वर्मा,डा0रामकुमार वर्मा,सुमित्रा नंदन पंत,मुंशी प्रेमचन्द सभी ने बच्चों के लिये साहित्य लिखा है।लेकिन उनके इस साहित्य को भी बड़ों के ही साहित्य में ही स्थान दिया गया।
उस समय भी बाल साहित्य को दोयम दर्जे का साहित्य ही माना जाता था।इतना ही नहीं उस समय बहुत से साहित्यकारों की यह सोच भी थी कि जो साहित्यकार बड़ों के लिये साहित्य लिखने में असफ़ल हो जाते हैं वो बाल साहित्य लिखना शुरू कर देते हैं। जबकि वास्तविकता इस तथ्य से कोसों दूर है। बाल साहित्य लिखना सामान्य साहित्य लिखने की अपेक्षा बहुत कठिन है।बाल साहित्य वही लिख सकता है जिसे बाल मनोविज्ञान के साथ ही बच्चों की भावनाओं,संवेदनाओं, उनकी रुचियों अरुचियों के साथ ही उनके स्तर की भाषा की समझ हो। बाल साहित्य लिखने के लिये लेखक को खुद भी बच्चा बनना पड़ता है।
आज की समस्या यह है कि बाल साहित्य प्रचुर मात्रा में लिखा जा रहा है। प्रकाशित भी हो रहा है।लोगों में बाल साहित्य को लेकर काफ़ी जागरूकता,उत्सुकता सभी कुछ है। (अब यह जरूर है कि लिखा जा रहा पूरा बाल साहित्य बच्चों के लिये उपयोगी नहीं है। कुछ बाल साहित्यकार तो बहुत अच्छा साहित्य लिख रहे हैं कुछ घटिया। और यह स्वाभाविक भी है।) लेकिन---फ़िर भी बाल साहित्य को वह दर्जा नहीं मिल पा रहा है जो मिलना चाहिये। आज भी बाल साहित्य मुख्य धारा से हटकर हाशिये पर ही पड़ा है।यह तो हुयी बाल साहित्य को पहचान मिलने की समस्या।
इसके अलावा भी बाल साहित्य के ऊपर कई संकट हैं।मसलन प्रकाशन,पुस्तकों के आकर्षक उत्पादन और सबसे बढ़ कर बच्चों तक पुस्तकें पहुंचने की।बच्चों के लिये प्रकाशित ज्यादातर किताबों का उत्पादन इतने घटिया स्तर का रहता है कि बच्चे उन्हें पढ़ने के लिये आकर्षित ही नहीं होंगे। ज्यादातर प्रकाशक बाल साहित्य सिर्फ़ सरकारी खरीद के लिये प्रकाशित करते हैं।
बाल साहित्य को आगे बढ़ाने की दिशा में नेशनल बुक ट्रस्ट,चिल्ड्रेन्स बुक ट्रस्ट,और भारत सरकार के प्रकाशन विभाग का योगदान महत्वपूर्ण है। इनके अलावा कुछ एन जी ओ जैसे प्रथम बुक्स,नालन्दा,एकलव्य आदि भी बच्चों तक अच्छी आकर्षक और बढ़िया किताबें पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं। इन संगठनों द्वारा प्रकाशित बच्चों का साहित्य विषयवस्तु और साज सज्जा दोनों ही दृष्टियों से बेहतरीन कहा जा सकता है।
कुछ प्राइवेट प्रकाशक भी बच्चों की अच्छी किताबें छाप रहे हैं। लेकिन दिक्कत वही है इन किताबों की पहुंच बच्चों तक नहीं हो पा रही है। ये किताबें भी या तो सरकारी खरीद में जाकर पुस्तकालयों की आल्मारियों में बन्द हो जा रही हैं या फ़िर महंगी होने के कारण बच्चों के अभिभावकों की जेब से बाहर हैं।
यद्यपि बच्चों तक किताबें पहुंचाने की दिशा में नेशनल बुक ट्रस्ट का बाल साहित्य केन्द्र(एन सी सी एल) काफ़ी प्रयास कर रहा है। इसकी तरफ़ से देश भर में स्कूलों के साथ ही मुहल्लों में भी पाठक मंचों की स्थापना करवाई जा रही है। तथा उन केन्द्रों को एन बी टी अपने प्रकाशनों के साथ ही दूसरे प्रकाशकों की भी बच्चों की अच्छी किताबें सस्ते मूल्य पर उपलब्ध करा रहा है। साथ ही कई एन जी ओ भी गांवों के साथ ही झुग्गी,झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के लिये बाल साहित्य उपलब्ध कराने की दिशा में सक्रिय हैं। फ़िर भी सरकारी स्तर पर इन कार्यक्रमों को और गति देने की जरूरत है।
मेरे विचार से हिन्दी बाल साहित्य को हाशिये पर से उठा कर साहित्य की मुख्य धारा में लाने के लिये सरकारी स्तर पर निम्न लिखित प्रयास होने चाहिये।
0 बाल साहित्यकारों को भी साहित्य की मुख्य धारा में स्थान दिलवाना।
0 अच्छा बाल साहित्य लिखने के लिये उचित प्रशिक्षण की व्यवस्था।
0 लिखे जा रहे श्रेष्ठ बाल साहित्य के आकर्षक उत्पादन एवम प्रकाशन की
व्यवस्था।
0 चूंकि बच्चों की किताबों की डिजाइनिंग,ले आउट, और उत्पादन पर ज्यादा
खर्च आता है। इसलिये बाल साहित्य के प्रकाशकों को बढिया स्तर का
कागज सस्ते मूल्य पर उपलब्ध कराने, सस्ती दरों पर किताबों के छपाई
की व्यवस्था ---अथवा बच्चों के लिये आकर्षक किताबें छापने वाले
प्रकाशकों के लिये सरकार की तरफ़ से सब्सीडी देने की व्यवस्था।
0 और सबसे अन्तिम और मह्त्वपूर्ण बात यह कि प्रकाशित अच्छे बाल साहित्य को बच्चों के हाथों तक पहुंचाने की व्यवस्था।
यदि हमारी सरकार इन बिन्दुओं पर कुछ ध्यान दे तो सम्भवतः हिन्दी के बाल साहित्य को उचित दिशा और स्थान मिल सकेगा।
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हेमन्त कुमार
7 टिप्पणियाँ:
आप सच कह रहे हैं। बच्चों के लिये तो लिखना ही पड़ेगा।
sahi prayaas ...... sarkar tak yah khyaal pahunche
जिन जरूरी विंदुओं पर आपने ध्यान दिलाया वे सचमुच बहुत ही जरूरी है । हम अपने बच्चो को पढ़ने को क्या दे रहे हैं ( पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त ) यह देखना बेहद जरूरी है !
आपकी सोच विचारणीय है ... बच्चों से ही किसी समाज की शुरुआत होती है ... उनको और उनसे जुड़ी हर बात को उचित सम्मान मिलना चाहिए ...
could not understand ,
cute image!
फ़िर भी बाल साहित्य को वह दर्जा नहीं मिल पा रहा है जो मिलना चाहिये। आज भी बाल साहित्य मुख्य धारा से हटकर हाशिये पर ही पड़ा है।
आपकी बात से पूरी तरह सहमत हूँ.बाल साहित्य एक उपेक्षित सी विधा बन कर रह गयी है. इसे मुख्य धारा में शामिल करने का प्रयास सभी स्तरों से किया जाना चाहिए.
बाल साहित्य को लेकर आपकी चिंता और चिंतन के लिए साधुवाद. बाल साहित्य को लेकर बहुत गंभीर होने की आवश्यकता है . मैंने एक पुस्तक बाल साहित्य के प्रतिमान सविस्तार लिखी है . आप उसकी जानकारी blog - http://abhinavsrijan.blogspot.com पर प्राप्त कर सकते हैं . आपको पुन : बधाई और अनंत धन्यवाद.
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