“नया तमाशा नयी कहानी”
सोमवार, 25 मई 2015
“नया तमाशा नयी कहानी”
(बाल नाटक)—डा0हेमन्त कुमार
(मंद बुद्धि बच्चों के मनोभावों को आप तक पहुंचाने की
एक कोशिश)
मैं आज आपके सामने
अपने लगभग पूरे हो चुके बाल नाटक “नया
तमाशा नयी कहानी” के दो दृश्य
प्रकाशित कर रहा हूं।आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे नाटक को सुधारने/घटाने /बढ़ाने मे मदद
करेंगी।
(दृश्य—3)
(गनेसी के घर का
बराम्दा।नन्हकऊ एक नया पीढ़ा बना रहा है।पास में ही गनेसी बसेहटी खटिया पर पालथी
मार कर बैठा मोटर चलाने का अभिनय कर रहा है।उसके हाथ में किसी छोटी साइकिल का टायर
है।वह उसी को स्टेयरिंग की तरह इधर उधर घुमा रहा है साथ ही मुंह से तरह तरह की
आवाजें भी निकाल रहा है।)
गनेसी:(टायर को
स्टेयरिंग की तरह घुमाते हुए) घुल्ल—घुल्ल—पों—पों—पीं—पींप—हतो भाई हतो—मेली मोतल चल पड़ी—हत जाओ बापू सामने छे हत जाओ ---पीं—पींप---।
(गनेसी की मां
पार्वती का प्रवेश।पार्वती के एक हाथ में एक थैला है।दूसरे में गत्ते का एक छोटा
डिब्बा।)
पार्वती:(गनेसी
से)ले बेटा गनेसी—ये थैला जरा
भीतर रख आ---और इस डिब्बे में कुछ है खा ले।–सुबह से भूखा होगा मेरा---लाल।
(गनेसी के पास जाकर आंचल से उसका मुंह पोंछती
है।गनेसी उसी तरहा टायर घुमाता रहता है।जैसे उसने सुना ही न हो।)
गनेसी:पीं—पींप—हत्तो अम्मा—हज्जाओ—मेली मोटल आ र्रर्रर्रर्रही है---देखो अम्मा
हम ल को र्रर्रर्र बोल दिये---पीं पींप---।
पार्वती:अरे
बेटवा---पहिले कुछ खाई ले फ़िर चलाना मोटर।
गनेसी:(टायर घुमाते
हुए)मिथाई लाई हो का अम्मा?
पार्वती:मिठाई नहीं
तो बाबा जी का ठुल्लू लाए हैं। अरे सबेरे से एक बोरा गेहूं साफ़ किया तो ठकुराइन ने
चार ठो बासी पूड़ी औ सब्जी दी है।ले बइठ के खाई ले।
(गनेसी टायर छोड़
कर बहुत जोर से ताली पीटता है और हंसता
है)
गनेसी: हा –हा—हा—हा—बाबा जी का थुल्लू।लाओ अम्मा देखें कैसा होता
है बाबा जी का थुल्लू?मीठा होता है का--?
(पार्वती उसके सामने
दफ़्ती का डिब्बा रख कर माथा पकड़ कर बैठ जाती है।नन्हकऊ अपने काम में लगा रहता
है।गनेसी गत्ते का डिब्बा लेकर नन्हकऊ के सामने जाता है।)
गनेसी:(नन्हकऊ
से)बापू—बापू लो तुम भी खा लो—अम्मा बाबा जी का थुल्लू लाई हैं।
(नन्हकऊ बोलता नहीं
अपने काम में लगा रहता है।)
गनेसी:बापू,कभी खाए
हो बाबा जी का थुल्लू?
(नन्हकऊ गुस्से में
एक बार गनेसी की तरफ़ देखता है फ़िर उसे कस कर एक झापड़ मारता है।गनेसी हतप्रभ हो
जाता है।)
नन्हकऊ:भाग साले
इहां से—पागल कहीं का—काम नहीं करने दे रहा।सबेरे से घुरुर घुरुर
लगाए है।इस्कुलवौ में बैठते नहीं बनता—जा भाग।
(गनेसी हक्का बक्का
हो कर नन्हकऊ को
करुणा भरी निगाहों से देखता है।फ़िर पूड़ियों का डिब्बा नन्हकऊ की तरफ़ फ़ेंक कर हंसता
हुआ तेजी से बाहर की ओर भागता है।)
गनेसी:हा—हा—हा—बाबा जी का
थुल्लू---थुल्लू---।
(पार्वती उसे आवाज
देती है)
पार्वती:अरे रुक जा
बेटा—पूड़ी खा ले फ़िर जा---।
(गनेसी रुकता नहीं तेजी से भाग जाता है।)
पार्वती:क्यों मार
दिया बिचारे को?पूड़ी तो खा लेने दिये होते उसको----।
नन्हकऊ:(गुस्से
में)मारें न तो का पूजा करें?साला पागल—ढपोंग का पंडवा होइ गया।इसकी उमर के बच्चे काम धाम करके कमा रहे हैं।ई
ससुरा सबेरे से घरवै में कोहराम मचाए रहता है।मर भी नहीं जाता साला।
पार्वती:(करुण
स्वरों में)काहे कोस रहे हो बिचारे को---अब भगवान ने कम बुद्धि दे के भेजा है तो ऊ
का करै?कहां से हो जाए और लड़कन की तरह—बिचारे को पूड़ी भी नहीं खाए दिये---।
(नन्हकऊ गुस्से में
पीढ़ा हथौड़ी पटक कर बाहर की तरफ़ निकल जाता है।करुण संगीत।दृश्य यहीं फ़ेड आउट होता है।)
दृश्य-7
(गांव का ही
दृश्य।मंच पर हल्का प्रकाश।मंच के एक तरफ़ से गनेसी,गुड़िया,शंकर और तीन चार अन्य
मंद बुद्धि बच्चे कतार बद्ध होकर बहुत धीरे-धीरे आते हैं।मंच के बीचोबीच रुक जाते
हैं।दर्शकों की तरफ़ मुंह करके उन्हें संबोधित करते हैं।)
गनेसी:(हाथ उठाकर
दुखी स्वरों में)
हम हैं बड़े अभागे बच्चे
हम हैं बड़े उपेक्षित बच्चे
कुछ भी कह लें आप सभी पर
आखिर हम भी आप के बच्चे।
फ़िर भला हमारी क्या है गलती
क्यूं मिलती रोज हमें है झिड़की।
गुड़िया:(दर्शकों की
तरफ़ झुक कर)
फ़िर भला हमारी क्या है गलती
क्यूं मिलती रोज हमें है झिड़की।
बच्चा(तीन): घरों पे मिलती हमें उपेक्षा
स्कूल भी दोस्त नहीं क्यूं सच्चा
हमें चिढ़ाता क्यूं हर बच्चा
शिक्षक कहते पगला बच्चा।
फ़िर भला हमारी क्या है गलती
क्यूं मिलती रोज हमें है झिड़की।
बच्चा(चार): हम भी कभी थे प्यारे बच्चे
गोल मटोल बबुओं के जैसे
बढ़ता गया आकार हमारा
दिखता गया विकार हमारा।
फ़िर भला हमारी कहां थी गलती
क्यूं मिलती रोज हमें है झिड़की।
(पूरे मंच पर
अंधकार।केवल एक स्पाट लाइट मंच के बीच बैठे गनेसी के ऊपर पड़ेगी।गनेसी मंच के बीच
में उकड़ूं बैठ कर दोनों पांवों के बीच अपना सर छुपा लेता है।बाकी सारे बच्चे एक
दूसरे का हाथ पकड़ कर उसके चारों ओर घूमते रहते हैं।)
सारे बच्चे(सामूहिक
स्वर में):
आखिर हमने क्या की गलती
रोज हमें क्यूं मिलती झिड़की।
(बच्चों के घूमने की
गति तेज होती है।तेजी से घूमने के साथ ही सारे बच्चे“आखिर हमने क्या--।”
गाते रहते हैं।बीच
में गनेसी और अधिक सिकुड़ कर बैठता जाता है।गनेसी सिसकता भी हैऽन्त में सारे बच्चे
गनेसी के ऊपर झुक जाते हैं। दृश्य यहीं फ़्रीज होकर फ़ेड आउट हो जाता है।)
(यह अन्त नहीं एक शुरुआत है…)
1 टिप्पणियाँ:
वाकई आदरणीय ये अंत नहीं शुरुआत है. सुंदर चित्रांकन बेहतरीन नाटक
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